10 Sept 2015

हक़ आया बातिल गया

1400 बरस पहले जब हमारे प्यारे नबी (स) इस दुनिया से रुखसत हुए थे, उस वक़्त मदीने की गलियों में एक मर्द और एक औरत घर घर जा कर लोगो को खुदा के एक बेहतरीन निजाम “विलायत” के बारे में याद दहानी करा रहे थे, जिसके बारे में हुजुर (स) ने कुछ ही दिनों पहले अपने आखरी हज से लौटते वक़्त लोगो को “ग़दीर” नाम की जगह पर जमा कर के बताया था, और कहा था की अगर दुनिया और आखिरत में सरबुलंद रहना चाहते हो तो निज़ामे विलायत को मजबूती से थामे रहना. और कहा की “अल्लाह तुम्हारा वली है, मैं तुम्हारा वली हुआ और मेरे बाद अल्लाह की जनीब से इमाम अली (अ) तुम्हारे वली है.”


लेकिन अफ़सोस, अपने जाती मफाद के लिए उम्मत के कुछ लोगो ने ये हक ज़माने के वली तक नहीं पहुचने दिया और खुद उस मनसब पर बैठ गए. लेकिन एक इलाही मनसब पर ग़ैर इलाही बन्दे बैठ कर कैसे इन्साफ कर सकते थे! फिर कुछ ऐसे हालात तब्दील होते है की आज 1400 बरस के बाद दुनिया को ये बोलने का मौक़ा मिल जाता है की इस्लाम तलवार के जोर से फैला है. ये तो एक मिसाल है, ऐसी बहोत सी चीज़े है जो इलाही विलायत के मनसब पर दुसरे लोगो को बिठाने की सजा में उम्मत को मिली है.

विलायत के साथ अद्ल नहीं करने का खामियाज़ा फौरी तौर पर उम्मत को मिला और 50 के अन्दर अन्दर यजीद जैसा ज़ालिम और जाबिर बादशाह मुसलमानों का सरपरस्त बन गया. यजीद ने ना सिर्फ लोगो पर ज्यादतियां की बल्कि सिरे से इस्लाम को ही मिटाने के पीछे पद गया. यजीद के चुंगल से दीन को बचाने के लिए हुजुर (स) के नवासे, इमाम हुसैन (अ) को अपनी जान की कुर्बानी पेश करनी पड़ी.

उसके बाद एक एक करके अहलेबैत (अ) के घराने के इमाम आते रहे लेकिन खिलाफत का ओहदा संभाले नाम निहाद खुलुफा उनके साथ बुरा बरताव करते रहे, यहाँ तक की सभी इमामो को शहीद कर दिया गया. अल्लाह जल्ले शानाहू ने अपना जलवा दिखाया और अपनी आखरी हुज्जत, इमाम मेहदी (अ) को पर्दा-ए-गैब में छुपा लिया.

लेकिन एक बात गौर करने की है, एक वक़्त था जब तनहा अली-ओ-ज़हरा (स) मदीने की गलियों में लोगो से विलायत के दिफ़ा के लिए दावत दे रहे थे और कोई साथ देने के लिए तैयार नहीं था. वक़्त के गुज़रने के साथ, लोगो को फिकरे विलायत की कमी महसूस होने लगी और आइम्म (अ) के ज़माने में उनके माननेवालो की तादाद में मुसलसल इजाफा होता रहा. लोग सच और हक को पहचान रहे थे और उनके माननेवाले बढ़ रहे थे. लेकिन फिर भी ये तादाद इतनी ज्यादा नहीं थी की अहलेबैत (अ) अपने हक के लिए खड़े होते. खास कर जब क्वालिटी की बात की जाए तो इस तादाद में बहोत कम लोग उस कसौटी पर खरे उतरते थे जो की अहलेबैत (अ) को चाहिए थी.

आज भी वक़्त वैसा ही है. अहलेबैत (अ) के माननेवाले आबादी के हिसाब से दुनिया में बहोत कम है, और जो है भी, वो उस क्वालिटी के मेयार पर खरे नहीं उतरते. लेकिन पिछले कुछ साल ओमे एक चीज़ में तबदीली आई है, जिसकी वजह से सारी दुनिया शिअत के नाम से आशना हुई है. 1400 साल से आज तक जो कौम ज़ालिमो के ज़ुल्म तले बदती चली आई है; मुत्तकी, जाबाज़ और पैरोए मुजतहिद ईरानी इन्केलाबियो की हिम्मत और जज्बे ने इमाम खुमैनी कयादत में दुनिया के ज़ालिम तरीन निजाम अमेरीका के बिठाए हुए ज़ालिम बादशाह रेज़ा शाह पहलवी को तेहरान से बहार निकल फेका और सरज़मीने ईरान पर तारीख में पहली बार इमाम अली (अ) की ज़ाहिरी खिलाफत के बाद अहलेबैत (अ) की फिकह का निफाज़ एक फकीह की कयादत में विलायते फकीह की शक्ल में दुनिया ने देखा.

यह कोई आम बात नहीं है जो की सरसरी में नज़रअंदाज़ कर दी जाए. निजामे विलायत, जिसकी पहचान हुजुर (स) ने ग़दीर के मैदान में कराई थी, जिसके जेरे एहतेमाम क़नुने इलाही ज़मीन पर एक वाली की कयादत में नाफ़िज़ हुआ था. ये बात ध्यान रहे की विलायते फकीह किसी भी सूरत में मिस्ले विलायते इमामे मसुं नहीं है, बल्कि सिर्फ और सिर्फ घिबत के ज़माने में इमाम के बताए हुए रास्ते पर चलने का नाम है. जैसे ही ज़हूरे इमामे ज़माना (अ) होगा, ये हुकूमत अपने आप को इमाम (अ) के क़दमो में पेश कर देगी, और हकीकी निजामे इलाही का निफाज़ होगा. अस्ल में विलायते फकीह की हुकूमत हकीकी निज़ामे इलाही का एक जलवा है, जिसे इन्फिजारे नूर के नाम से जाना जाता है.

आलमी इस्तेक्बार (अमेरीका) जहा अपना सरमायादारी पर मबनी निज़ाम (कैपिटलिस्ट सिस्टम) दुनिया पर थोपने की फिराक़ में है और दुनिया के सारी चीज़ो पर अपना कब्ज़ा ज़माने के पीछे पड़ा हुआ है, जजिसके लिए उसने सभी मुल्को के आला अफसरों और सियासतदानो को खरीद लिया है. 1979 के पहले आलमी इस्तेक्बर के सामने कोई सर उठाने को तैयार नहीं था. सोवियत रूस भी कोल्ड वार का शिकार हो कर टुकडो में बटने की कगार पर था और साड़ी दुनिया अमेरीका के कैपिटलिस्ट निजाम के सामने सर झुकाने पर मजबूर थी; ऐसे वक़्त में इमाम खुमैनी की कयादत में जो इस्लामी इन्केलाब ईरानी सरज़मीन पर आया, उसने अमेरीका के होश उड़ा दिए. दुनिया के तमाम हक्परस्तो को एक राहे निजात दिखाई देने लगा और लोग राहे इन्केलाब पर चलने के लिए आमादा होने लगे.

सवाल ये उठता है की क्या इमाम खुमैनी ने ये राह खुद से ईजाद करी थी या ये राह कही छुपी हुई मौजूद थी. जब खुद इमाम खोमीनी से पुचा गया तो उन्होंने कहा की विलायते फकीह तसलसुल है विलायते खुदा का क्युकी इस निजाम में फकीह बादशाह नहीं बल्कि एक खादिम बन कर दीनी निजाम को मुआशरे में नाफ़िज़ करने की जद्दोजहद करता है.

पिछले दिनों एक कांफ्रेंस में एक पोलिटिकल एनालिस्ट मिडिल ईस्ट पर बात करते हुए कह रहे थे की आज सभी मज़हब एक बोहरान का शिकार है और उनके यहाँ मौजूद कट्टरवादी लोग मज़हब को अपने जाती मफाद के लिए इस्तेमाल कर रहे है. चाहे हिन्दू हो या सिख, यहूदी हो या इसाई, इस्लाम हो या कोई और मज़हब; हर जगह मज़हब का गलत इस्तेमाल कर के खुद की रोटीयां सकी जा रही है.

इतना ही नहीं, हर एक मज़हब में आपको ऐसे नुक्ते मिल जाएगे जो कट्टरवाद की तरफ इशारा करते है और जिसकी वजह से एक मज़हब को माननेवाले दुसरे मज़हब से लड़ते है और उस लड़ने को अपना हक समझते हिया और अगर इस लड़ाई में मर जाए, तो खुद को जन्नत का हक़दार मानते है. इस ग़लतफ़हमी में मुसलमान भी पीछे नहीं है. दुनिया में जितना भी तशद्दुद मुसलमानों के ज़रिये फैला है वो इसी ग़लतफ़हमी की वजह से है की हम सच्चे है और दुसरो को जीने का हक नहीं है.

अगर इस्लाम के दो बड़े फिरको, शिया और सुन्नी, को देखा जाए तो तस्वीर साफ़ दिखने लगती है. दोनों की किताबो में ऐसे बहोत सी हदीसे मिलेगी जो “सहीह” नहीं है बल्कि “ज़ईफ़” है. येही ज़ईफ़ हदीसे एक मुसलमान को दुसरे मुसलमान से और दुसरे इंसानों से लड़ने पर उकसाती है. तल=क्लिफ की बात ये है की हदीसो को कुरान के लेवल पर ला कर उसे सहीह का दर्जा दे दिया जाता है और किसी भी तरह की एनालिसिस / रिसर्च करने पर पाबन्दी आयद कर दी जाती है. ऐसी सूरत में बहोत सी ज़ईफ़ हदीसे दीन का हिस्सा बन जाती है और जो बिगड़ी शक्ल इंसानियत के सामने आती है उसे ISIS कहा जाता है.

उस पोलिटिकल एनालिस्ट ने बाद में कहा की असलान आज सभी मज़हब और फिरके बोहरान में है लेकिन शिअत एक ऐसा मकतब है जिसने इज्तीहाद का दरवाज़ा खुला रखा है और हर दादीस को कुरान की कसौटी पर जाच कर उसे सही या गलत साबित किया जाता है. इस बिना पर कोई भी शिया हदीस की किताब को सहीह नहीं कहा जाता बल्कि हर मुजतहिद उन हदीसो पर रिसर्च करता है और उस रिसर्च की बिना पर हदीस को सहीह या ज़ईफ़ का दर्जा दिया जाता है.

वो एनालिस्ट यही पर नहीं रुका बल्कि उसने कहा की ये शिअत की खूबसूरती है की आज ईरान में एक इस्लामी हुकूमत काएम है जो दुनिया को अम्न और सलामती की राह दिखा रही है और तमाम ज़ालिमो के मुकाबले में पिछले 35 साल से खड़े हो कर मशाल-ए-आज़ादी बुलंद किये हुए है.

मुझे वो वक़्त याद आ गया जिस वक़्त अली-ओ-फातिमा (स) मदीने की गलियों में लोगो को निजामे विलायत के हक के दिफ़ा के लिए आवाज़ दे रहे थे और कोई नहीं सुन रहा था. हाकी वो आवाज़ बेकार नहीं गई; आज 1400 साल बाद एक फकीह-ओ-मुजतहिद ने उस आवाज़ पर लब्बैक कहा और अपने मुल्क में उस निजाम को नाफ़िज़ कर के दुनिया को दिखा दिया की अगर इंसानियत को हकीकी निज़ामे विलायत मिल गया होता तो आज इंसानियत अपनी मेराज पर होती और दुनिया में ज़ुल्म का नामो निशान तक ना होता.

कुराने पाक की आयत की झलक साफ़ आ गई जिसमे अल्लाह इरशाद फरमाता है:

وَقُلْ جَاء الْحَقُّ وَزَهَقَ الْبَاطِلُ إِنَّ الْبَاطِلَ كَانَ زَهُوقًا

और (ऐ रसूल (स)) कह दो की हक आया और बातिल निस्तोनाबुद हुआ, और इसमें शक नहीं की बातिल मिटने वाला ही था (17:81)

आइये हम ख़ुदावंदे आलम से दुआ करे की इस विलायत के निजाम की ज़हूरे इमाम मेहदी (अ) तक हिफाज़त फार्म और हमें जल्द अज जल्द हकीकी निजामे विलायत में अपने ज़माने के इमाम, इमाम मेहदी (अ) के साए में ज़िन्दगी बसर करने की सआदत नसीब फरमा.

इलाही आमीन.

तहरीर: अब्बास हिंदी

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1400 बरस पहले जब हमारे प्यारे नबी (स) इस दुनिया से रुखसत हुए थे, उस वक़्त मदीने की गलियों में एक मर्द और एक औरत घर घर जा कर लोगो को खुदा के एक बेहतरीन निजाम “विलायत” के बारे में याद दहानी करा रहे थे, जिसके बारे में हुजुर (स) ने कुछ ही दिनों पहले अपने आखरी हज से लौटते वक़्त लोगो को “ग़दीर” नाम की जगह पर जमा कर के बताया था, और कहा था की अगर दुनिया और आखिरत में सरबुलंद रहना चाहते हो तो निज़ामे विलायत को मजबूती से थामे रहना. और कहा की “अल्लाह तुम्हारा वली है, मैं तुम्हारा वली हुआ और मेरे बाद अल्लाह की जनीब से इमाम अली (अ) तुम्हारे वली है.”


लेकिन अफ़सोस, अपने जाती मफाद के लिए उम्मत के कुछ लोगो ने ये हक ज़माने के वली तक नहीं पहुचने दिया और खुद उस मनसब पर बैठ गए. लेकिन एक इलाही मनसब पर ग़ैर इलाही बन्दे बैठ कर कैसे इन्साफ कर सकते थे! फिर कुछ ऐसे हालात तब्दील होते है की आज 1400 बरस के बाद दुनिया को ये बोलने का मौक़ा मिल जाता है की इस्लाम तलवार के जोर से फैला है. ये तो एक मिसाल है, ऐसी बहोत सी चीज़े है जो इलाही विलायत के मनसब पर दुसरे लोगो को बिठाने की सजा में उम्मत को मिली है.

विलायत के साथ अद्ल नहीं करने का खामियाज़ा फौरी तौर पर उम्मत को मिला और 50 के अन्दर अन्दर यजीद जैसा ज़ालिम और जाबिर बादशाह मुसलमानों का सरपरस्त बन गया. यजीद ने ना सिर्फ लोगो पर ज्यादतियां की बल्कि सिरे से इस्लाम को ही मिटाने के पीछे पद गया. यजीद के चुंगल से दीन को बचाने के लिए हुजुर (स) के नवासे, इमाम हुसैन (अ) को अपनी जान की कुर्बानी पेश करनी पड़ी.

उसके बाद एक एक करके अहलेबैत (अ) के घराने के इमाम आते रहे लेकिन खिलाफत का ओहदा संभाले नाम निहाद खुलुफा उनके साथ बुरा बरताव करते रहे, यहाँ तक की सभी इमामो को शहीद कर दिया गया. अल्लाह जल्ले शानाहू ने अपना जलवा दिखाया और अपनी आखरी हुज्जत, इमाम मेहदी (अ) को पर्दा-ए-गैब में छुपा लिया.

लेकिन एक बात गौर करने की है, एक वक़्त था जब तनहा अली-ओ-ज़हरा (स) मदीने की गलियों में लोगो से विलायत के दिफ़ा के लिए दावत दे रहे थे और कोई साथ देने के लिए तैयार नहीं था. वक़्त के गुज़रने के साथ, लोगो को फिकरे विलायत की कमी महसूस होने लगी और आइम्म (अ) के ज़माने में उनके माननेवालो की तादाद में मुसलसल इजाफा होता रहा. लोग सच और हक को पहचान रहे थे और उनके माननेवाले बढ़ रहे थे. लेकिन फिर भी ये तादाद इतनी ज्यादा नहीं थी की अहलेबैत (अ) अपने हक के लिए खड़े होते. खास कर जब क्वालिटी की बात की जाए तो इस तादाद में बहोत कम लोग उस कसौटी पर खरे उतरते थे जो की अहलेबैत (अ) को चाहिए थी.

आज भी वक़्त वैसा ही है. अहलेबैत (अ) के माननेवाले आबादी के हिसाब से दुनिया में बहोत कम है, और जो है भी, वो उस क्वालिटी के मेयार पर खरे नहीं उतरते. लेकिन पिछले कुछ साल ओमे एक चीज़ में तबदीली आई है, जिसकी वजह से सारी दुनिया शिअत के नाम से आशना हुई है. 1400 साल से आज तक जो कौम ज़ालिमो के ज़ुल्म तले बदती चली आई है; मुत्तकी, जाबाज़ और पैरोए मुजतहिद ईरानी इन्केलाबियो की हिम्मत और जज्बे ने इमाम खुमैनी कयादत में दुनिया के ज़ालिम तरीन निजाम अमेरीका के बिठाए हुए ज़ालिम बादशाह रेज़ा शाह पहलवी को तेहरान से बहार निकल फेका और सरज़मीने ईरान पर तारीख में पहली बार इमाम अली (अ) की ज़ाहिरी खिलाफत के बाद अहलेबैत (अ) की फिकह का निफाज़ एक फकीह की कयादत में विलायते फकीह की शक्ल में दुनिया ने देखा.

यह कोई आम बात नहीं है जो की सरसरी में नज़रअंदाज़ कर दी जाए. निजामे विलायत, जिसकी पहचान हुजुर (स) ने ग़दीर के मैदान में कराई थी, जिसके जेरे एहतेमाम क़नुने इलाही ज़मीन पर एक वाली की कयादत में नाफ़िज़ हुआ था. ये बात ध्यान रहे की विलायते फकीह किसी भी सूरत में मिस्ले विलायते इमामे मसुं नहीं है, बल्कि सिर्फ और सिर्फ घिबत के ज़माने में इमाम के बताए हुए रास्ते पर चलने का नाम है. जैसे ही ज़हूरे इमामे ज़माना (अ) होगा, ये हुकूमत अपने आप को इमाम (अ) के क़दमो में पेश कर देगी, और हकीकी निजामे इलाही का निफाज़ होगा. अस्ल में विलायते फकीह की हुकूमत हकीकी निज़ामे इलाही का एक जलवा है, जिसे इन्फिजारे नूर के नाम से जाना जाता है.

आलमी इस्तेक्बार (अमेरीका) जहा अपना सरमायादारी पर मबनी निज़ाम (कैपिटलिस्ट सिस्टम) दुनिया पर थोपने की फिराक़ में है और दुनिया के सारी चीज़ो पर अपना कब्ज़ा ज़माने के पीछे पड़ा हुआ है, जजिसके लिए उसने सभी मुल्को के आला अफसरों और सियासतदानो को खरीद लिया है. 1979 के पहले आलमी इस्तेक्बर के सामने कोई सर उठाने को तैयार नहीं था. सोवियत रूस भी कोल्ड वार का शिकार हो कर टुकडो में बटने की कगार पर था और साड़ी दुनिया अमेरीका के कैपिटलिस्ट निजाम के सामने सर झुकाने पर मजबूर थी; ऐसे वक़्त में इमाम खुमैनी की कयादत में जो इस्लामी इन्केलाब ईरानी सरज़मीन पर आया, उसने अमेरीका के होश उड़ा दिए. दुनिया के तमाम हक्परस्तो को एक राहे निजात दिखाई देने लगा और लोग राहे इन्केलाब पर चलने के लिए आमादा होने लगे.

सवाल ये उठता है की क्या इमाम खुमैनी ने ये राह खुद से ईजाद करी थी या ये राह कही छुपी हुई मौजूद थी. जब खुद इमाम खोमीनी से पुचा गया तो उन्होंने कहा की विलायते फकीह तसलसुल है विलायते खुदा का क्युकी इस निजाम में फकीह बादशाह नहीं बल्कि एक खादिम बन कर दीनी निजाम को मुआशरे में नाफ़िज़ करने की जद्दोजहद करता है.

पिछले दिनों एक कांफ्रेंस में एक पोलिटिकल एनालिस्ट मिडिल ईस्ट पर बात करते हुए कह रहे थे की आज सभी मज़हब एक बोहरान का शिकार है और उनके यहाँ मौजूद कट्टरवादी लोग मज़हब को अपने जाती मफाद के लिए इस्तेमाल कर रहे है. चाहे हिन्दू हो या सिख, यहूदी हो या इसाई, इस्लाम हो या कोई और मज़हब; हर जगह मज़हब का गलत इस्तेमाल कर के खुद की रोटीयां सकी जा रही है.

इतना ही नहीं, हर एक मज़हब में आपको ऐसे नुक्ते मिल जाएगे जो कट्टरवाद की तरफ इशारा करते है और जिसकी वजह से एक मज़हब को माननेवाले दुसरे मज़हब से लड़ते है और उस लड़ने को अपना हक समझते हिया और अगर इस लड़ाई में मर जाए, तो खुद को जन्नत का हक़दार मानते है. इस ग़लतफ़हमी में मुसलमान भी पीछे नहीं है. दुनिया में जितना भी तशद्दुद मुसलमानों के ज़रिये फैला है वो इसी ग़लतफ़हमी की वजह से है की हम सच्चे है और दुसरो को जीने का हक नहीं है.

अगर इस्लाम के दो बड़े फिरको, शिया और सुन्नी, को देखा जाए तो तस्वीर साफ़ दिखने लगती है. दोनों की किताबो में ऐसे बहोत सी हदीसे मिलेगी जो “सहीह” नहीं है बल्कि “ज़ईफ़” है. येही ज़ईफ़ हदीसे एक मुसलमान को दुसरे मुसलमान से और दुसरे इंसानों से लड़ने पर उकसाती है. तल=क्लिफ की बात ये है की हदीसो को कुरान के लेवल पर ला कर उसे सहीह का दर्जा दे दिया जाता है और किसी भी तरह की एनालिसिस / रिसर्च करने पर पाबन्दी आयद कर दी जाती है. ऐसी सूरत में बहोत सी ज़ईफ़ हदीसे दीन का हिस्सा बन जाती है और जो बिगड़ी शक्ल इंसानियत के सामने आती है उसे ISIS कहा जाता है.

उस पोलिटिकल एनालिस्ट ने बाद में कहा की असलान आज सभी मज़हब और फिरके बोहरान में है लेकिन शिअत एक ऐसा मकतब है जिसने इज्तीहाद का दरवाज़ा खुला रखा है और हर दादीस को कुरान की कसौटी पर जाच कर उसे सही या गलत साबित किया जाता है. इस बिना पर कोई भी शिया हदीस की किताब को सहीह नहीं कहा जाता बल्कि हर मुजतहिद उन हदीसो पर रिसर्च करता है और उस रिसर्च की बिना पर हदीस को सहीह या ज़ईफ़ का दर्जा दिया जाता है.

वो एनालिस्ट यही पर नहीं रुका बल्कि उसने कहा की ये शिअत की खूबसूरती है की आज ईरान में एक इस्लामी हुकूमत काएम है जो दुनिया को अम्न और सलामती की राह दिखा रही है और तमाम ज़ालिमो के मुकाबले में पिछले 35 साल से खड़े हो कर मशाल-ए-आज़ादी बुलंद किये हुए है.

मुझे वो वक़्त याद आ गया जिस वक़्त अली-ओ-फातिमा (स) मदीने की गलियों में लोगो को निजामे विलायत के हक के दिफ़ा के लिए आवाज़ दे रहे थे और कोई नहीं सुन रहा था. हाकी वो आवाज़ बेकार नहीं गई; आज 1400 साल बाद एक फकीह-ओ-मुजतहिद ने उस आवाज़ पर लब्बैक कहा और अपने मुल्क में उस निजाम को नाफ़िज़ कर के दुनिया को दिखा दिया की अगर इंसानियत को हकीकी निज़ामे विलायत मिल गया होता तो आज इंसानियत अपनी मेराज पर होती और दुनिया में ज़ुल्म का नामो निशान तक ना होता.

कुराने पाक की आयत की झलक साफ़ आ गई जिसमे अल्लाह इरशाद फरमाता है:

وَقُلْ جَاء الْحَقُّ وَزَهَقَ الْبَاطِلُ إِنَّ الْبَاطِلَ كَانَ زَهُوقًا

और (ऐ रसूल (स)) कह दो की हक आया और बातिल निस्तोनाबुद हुआ, और इसमें शक नहीं की बातिल मिटने वाला ही था (17:81)

आइये हम ख़ुदावंदे आलम से दुआ करे की इस विलायत के निजाम की ज़हूरे इमाम मेहदी (अ) तक हिफाज़त फार्म और हमें जल्द अज जल्द हकीकी निजामे विलायत में अपने ज़माने के इमाम, इमाम मेहदी (अ) के साए में ज़िन्दगी बसर करने की सआदत नसीब फरमा.

इलाही आमीन.

तहरीर: अब्बास हिंदी

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