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11 Jan 2018

Waseem Rizvi aur Shia Qaum

Hindustan ke State Uttar Pradesh me aaj Bhartiya Janta Party ki hukumat hai. Isi State me Shia aabadi ka bada hissa bhi rehta hai.

UP State ki history me Shia hukumat ka ek bada daur raha hai jiska markaz Lucknow aur atraaf ke ilaqon me tha. Isi wajah se Uttar Pradesh me Shia Waqf ki bahot si properties paai jati hai.

Shia Waqf properties ki dekh rekh ke liye sarkar dwara gathit Shia Waqf Board me Chairman ki post par Syed Waseem Rizvi appointed hai. In sahab par maazi me waqf property ke saath gadbadi karne ke mamle bhi darj hai. Isi wajah se Maulana Kalbe Jawad Sahab iske khilaf sarkar ko complaint kar chuke hai, lekin Sarkar ise hatane ka naam nahi le rahi hai.

Apne ghaflo aur ghotalo ko chupane ke liye Waseem Sahab aaj kal BJP ko lubhane wale bayanat de rahe hai jisme Ram Mandir nirman me Shia Waqf Board ki taraf se bayanat ke saath saath Hindustan me Madarso par pabandi laane jaise bayanat bhi shamil hai.

In bayanat ki wajah se sirf Shia Waqf Board ka naam hi kharab nahi ho raha hai balki puri Shia Qaum par aanch aa rahi hai.

Apne zaati mafaad ke liye Waseem Rizvi puri Shia Qaum ke naam par kichad uchaal raha hai.

Iske khilaaf Shia Olema ne milkar bhi awaaz uthai hai jinme Maulana Kalbe Jawad sb, Maulana Ahmed Ali Abedi sb, Maulana Hussain Mehdi Hussaini Sb, Maulana Taqi Agha Sb, Maulana Ghulam Mohammed Mehdi sb, aur digar Olema shamil hai.

Shia Qaum ke logo se guzarish hai ki Waseem Rizvi ke bayanat ki mazammat karte rahe, agar kisi ke zehan me ye khyal aae ki ye Shia Qaum ko represent kar raha hai to use batae ki iska Qaum se koi lena dena nahi hai aur awaam Olema ke saath mil kar khadi rahe, kahi aisa na ho ki Waseem Rizvi jaise bhediye humara naam le kar logo ko bewakuf banane me kamiyab ho jaae.

Shia Qaumi Halaat Channel
t.me/QaumiHalaat

Waseem Rizvi aur Shia Qaum

Hindustan ke State Uttar Pradesh me aaj Bhartiya Janta Party ki hukumat hai. Isi State me Shia aabadi ka bada hissa bhi rehta hai.

UP State ki history me Shia hukumat ka ek bada daur raha hai jiska markaz Lucknow aur atraaf ke ilaqon me tha. Isi wajah se Uttar Pradesh me Shia Waqf ki bahot si properties paai jati hai.

Shia Waqf properties ki dekh rekh ke liye sarkar dwara gathit Shia Waqf Board me Chairman ki post par Syed Waseem Rizvi appointed hai. In sahab par maazi me waqf property ke saath gadbadi karne ke mamle bhi darj hai. Isi wajah se Maulana Kalbe Jawad Sahab iske khilaf sarkar ko complaint kar chuke hai, lekin Sarkar ise hatane ka naam nahi le rahi hai.

Apne ghaflo aur ghotalo ko chupane ke liye Waseem Sahab aaj kal BJP ko lubhane wale bayanat de rahe hai jisme Ram Mandir nirman me Shia Waqf Board ki taraf se bayanat ke saath saath Hindustan me Madarso par pabandi laane jaise bayanat bhi shamil hai.

In bayanat ki wajah se sirf Shia Waqf Board ka naam hi kharab nahi ho raha hai balki puri Shia Qaum par aanch aa rahi hai.

Apne zaati mafaad ke liye Waseem Rizvi puri Shia Qaum ke naam par kichad uchaal raha hai.

Iske khilaaf Shia Olema ne milkar bhi awaaz uthai hai jinme Maulana Kalbe Jawad sb, Maulana Ahmed Ali Abedi sb, Maulana Hussain Mehdi Hussaini Sb, Maulana Taqi Agha Sb, Maulana Ghulam Mohammed Mehdi sb, aur digar Olema shamil hai.

Shia Qaum ke logo se guzarish hai ki Waseem Rizvi ke bayanat ki mazammat karte rahe, agar kisi ke zehan me ye khyal aae ki ye Shia Qaum ko represent kar raha hai to use batae ki iska Qaum se koi lena dena nahi hai aur awaam Olema ke saath mil kar khadi rahe, kahi aisa na ho ki Waseem Rizvi jaise bhediye humara naam le kar logo ko bewakuf banane me kamiyab ho jaae.

Shia Qaumi Halaat Channel
t.me/QaumiHalaat

3 May 2016

Shia Personal Law Board aur Shia People's Party - Kuch Sawalaat!!


Hindustan me Shia qaum ke representation ka sawal ek aisa sawal hai jiska jawab milna bahot mushkil nazar aata hai. Agar Qaum ke dastawezo, jaise Quraan aur Hadis ki roshni me dekhe to qaum ka rehnuma / leader / rehbar ek Aadil, baizzat aur deen ke jannewale bade aalim-e-deen ko hona chahiye. Lekin kya Hindustani Shia qaum me rehbariyat ke maqam par kaun faez hai?

24 Apr 2015

Lucknow Shia Ehtijaaj ki Mukhtasar Tarikh

उत्तर प्रदेश, लखनऊ के शियों के एहतेजाज की मुख़्तसर तारीख और उलेमा का इत्तेहाद

आज शिया क़ौम का बहोत बड़ा तब्क़ा चाहता है की शिया उलेमा व ज़केरिन में इत्तेहाद हो। यक़ीनन यह बहोत ही पाक ओ पाकीज़ा ख्याल है जिसकी क़ुबूलयाबी की दुआ हम भी करते रहे हैं।  दुआ करते वक़्त ज़रूरी है की, आज जो समझने के लिए हमें अपने गुज़रे हुए कल को समझना होगा। शिया उलेमा में किसी हद तक इत्तेहाद 1969 और 1974 के शिया - सुन्नी फसादात के कुछ अरसे बाद तक रहा।

1977 में, 21 माहे रमज़ान के जुलूस पर यज़ीदी फ़िरक़े ने हमला किया जिसके बाद हुकूमत ने एक बार फिर शिया जुलूसों पर पाबन्दी लगा दी। शिया लीडरशिप ने, मौलाना कल्बे आबिद साहब से मश्विरा किये बग़ैर, बजाए प्रोटेस्ट करने के, खुद ही आने वाले अशरे की तमाम बड़ी मजलिसें बंद करने का एलान कर दिया। मजलिसे बंद करने का एलान करने के बाद बेश्तर ज़किरीन खुद लखनऊ से दूसरे शहरों और  मुल्कों में मजलिस पढ़ने रवाना हो गए।

मरहूम मौलाना कल्बे आबिद साहब हस्बे मामूल अशरे से एक दिन पहले अलीग़ढ से लखनऊ आए तो इस फैसले से बहोत ज़्यादा अफ़सुर्दा हुए। शिया क़ौम जुलूस और मजलिसें बंद होने से बहोत नाराज़ थी। 5 मुहर्रम, 1977  शियों का एक बड़ा मजमा मौलाना कल्बे आबिद साहब के पास आया और ग़ुफ़्रानमाब में मजलिसे पढ़ने पर इसरार  किया, मौलाना ने उस फैसले की इज़्ज़त रखते हुए अपने घर पर ही 6  मुहर्रम से मजलिस पढ़ना शुरू कर दी।

दूसरे साल, क़ौम के मज़ीद इसरार पर इमाम बड़ा ग़ुफ़रान माब में अशरा फिर से शुरू किया जिसके बाद मदरसा ए नज़्मीयां और शिया कॉलेज में (जो मजलिस पहले इमामबाड़ा नाज़िम साहब में होती थी) मजलिस का सिलसिला शुरू हो गया। मौलाना कल्बे आबिद साहब ने 10 मुहर्रम 1977 से जुलूसों पर पाबन्दी के खिलाफ "कोर्ट अरेस्ट" का सिलसिला शुरू किया। उनका एक मशहूर जुमला जो उन्होंने 1984 में इमामबाड़ा ग़ुफ़रान माब के अशरे की मजलिस में कहा था, "हम गुज़श्ता 7 बरसों से अहतिजाज करते आए हैं। अरे अभी 7 बरस ही हुए हैं। हम कहते हैं की 7 नहीं, 70, बल्कि अगर 700 साल तक भी अज़ादारी के जुलूसों  बहाली के लिए एहतेजाज करना पढ़े तो हम पीछे नहीं हटेंगे।"

अहतिजाज का सिलसिला शुरू हो गया। इस दरमियान सबसे बढ़ा एहतेजाज 1978 में "यौमे फैसला" के नाम से हुआ जिसके रूहे रवां जनाब मौलाना कल्बे जावद साहब, जनाब शकील शम्सी साहब, यासा रिज़वी मरहूम, जुल्किफल रिज़वी व दीगर नौजवान थे। कर्फ्यू तोड़ कर अलम के जुलूस निकाले गए जिसमें लखनऊ का कोई भी मौलाना शरीक नहीं हुआ। शिया क़ौम के नौजवान लखनऊ, सीतापुर, बाराबंकी, फैज़ाबाद और उन्नाओ जेल भेज दिए गए। उन्नाओ जेल में "अली कांग्रेस" क़ायम की गई जिसके सरपरस्त मौलाना कल्बे आबिद साहब और प्रेजिडेंट मौलाना कल्बे जावद साहब मुंतख़िब हुए।

अली कांग्रेस ने मौलाना कल्बे आबिद साहब की सरपरस्ती में अहतिजाजात का एक लम्बा सिलसिला शुरू कर दिया। शियों ने लोक सभा इलेक्शंस बॉयकॉट भी किया जिसके बाद संजय गांधी ने मौलाना कल्बे आबिद साहब के नाम एक खत लिख कर शियों  जुलूस पर से पाबन्दी उठवाने का वादा किया। शियों ने बॉयकॉट वापस लिया और शीला कॉल शिया वोट्स की बिना पर (30,000 वोट्स से) इलेक्शन जीत गई। अफ़सोस की संजय गांधी का वो लेटर क़ौम के एक बड़े लीडर ने अपने पास रख लिया और मौलाना कल्बे आबिद साहब मरहूम से बार बार मांगने के बावजूद वापिस नहीं किया।
जनाब शकील शम्सी और दूसरे नौजवानो के रोज़गार की बिना लखनऊ से चले जाने के बाद प्रोटेस्ट्स का सिलसिला कुछ वक़्त के लिए रुक गया लेकिन यासा मरहूम ने जनाब जावेद मुर्तज़ा साहब को अली कांग्रेस से जोड़ा जिसकी बिना पर एक बार फिर प्रोटेस्ट्स का सिलसिला शुरू हो गया। जावेद साहब को काफी अरसे तक जेल में रहना पढ़ा।  जेल से वापसी के बाद जावेद साहब ने तय किया की क़ानूनी जंग लड़ी जाए।  इस फैसले के बाद अली कांग्रेस ने किसी क़िस्म का प्रोटेस्ट नहीं किया। रफ्ता रफ्ता अली कांग्रेस ने दूसरे इश्यूज पर अपनी तवज्जो मर्कूज़ कर दी जिसकी वजह से क़ौम में काफी इख्तेलाफ़ात पैदा हो गए। धीरे धीरे अली कांग्रेस के ज़्यादातर ओरिजिनल मेंबर्स, बा शमूल; मुअलना कल्बे जावद साहब उससे दूर होते चले गए।

अप्रैल 1997, में 3 शिया नौजवानो ने खुद को आग लगा दी जिसने  अज़ादारी मूवमेंट में एक  बार फिर से नयी रूह फूँक दी। मौलाना कल्बे जावद साहब ने जुलूसों पर  मोहाज़ खोल दिया और मई 1997 में जनाब अब्दुल्लाह बुखारी साहब को लखनऊ बुलाया की वो शिया और सुन्नी के दरमियान सुलह करवाएं। शियों की तमाम लीडरशिप  अब्दुल्लाह बुखारी का बॉयकॉट किया जबकि सुन्नी लीडरशिप ने उनके साथ निहायत बद-तहज़ीबी का मुज़हेरा किया।

3 जून, 1997 को अब्दुल्लाह बुखारी मरहूम, मौलाना क़मर मिनाई मरहूम (सज्जादा नशीन दरगाह शाह मीणा) और मौलाना कल्बे जावद साहब को गिरफ्तार कर लिया गया जिसके बाद पूरी शिया क़ौम सड़कों पर आ गई विधान सभा का अज़ीमुश्शान घेराओ किया गया। फ़ौरन ही सरकार को झुकना पढ़ा और तीनो लीडर्स रिहा कर दिए गए।

9 जून 1997, को मौलाना कल्बे जवाद साहब ने अपने घर पर तमाम अंजुमनों का जलसा किया जिसमे 115 अंजुमनें शरीक हुई। उस जलसे में तय पाया की हुकूमत को अल्टीमेटम दिया जाये की अगर 18 सफर (24 जून) तक पाबन्दी नहीं हठती है तो तमाम शिया, बरोज़ ए चेहलुम (26 जून, 1997) 1 बजे दिन को अपने घरों से निकल कर कर्बला तालकटोरा तक अलम का जुलूस ले जाएंगे। हुकूमत ने बहोत डराया धमकाया लेकिन क़ौम अपने  फैसले पर अटल रही और हुकूमत ने शब ए चेहलुम से कर्फ्यू लगा दिया और पुराने लखनऊ को पुलिस छावनी बना दिया।

एलान के मुताबिक़ चेहलुम के रोज़ मौलाना जावद साहब ठीक 1 बजे अपने घर से पुलिस का घेराओ तोड़ कर निकले। उस वक़्त तक तक़रीबन हर शिया सड़क पर मौजूद था (सिवाए लखनऊ के दूसरे शिया उलेमा और ज़केरिन के जो अपने घरों में घुसे रहे). पुलिस ने ज़बरदस्त लाठी चार्ज किया, आंसू गैस और हवा में गोलियां भी चलाई लेकिन क़ौम को डरा न सके। हज़ारों लोग अलम का जुलूस ले कर कर्बला तालकटोरा पहुंच गए। पुलिस ने हज़ारो मर्दों, औरतों (जिनमे मौलाना कल्बे जवाद साहब के घरवाले भी शामिल थे) को गिरफ्तार करके पुलिस लाइन ले गए। हज़ारों को देर रात छोड़ दिया और कई हज़ार को सीतापुर, उन्नाओ और लखनऊ जेल भेज दिया।

28 जून 1997 की सुबह 4 बजे मौलाना कल्बे जवाद साहब को उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया और उनपर NSA (नेशनल सिक्योरिटी एक्ट) लगा कर ललित पूरी जेल भेज दिया।  मौलाना के गिरफ़्तारी की खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गई और एक बार फिर शिया कर्फ्यू तोड़ कर सड़कों पर आ गए। कई जगह हथगोले और बंदूक की गोलियां भी चलीं। दो दिन बाद मौलाना के भाई और कई अज़ीज़ों को भी गिरफ्तार कर लिया गया और उनको 307 और कई दूसरी सख्त दफा लगाकर TADA के खतरनाक मुजरिमों के साथ लखनऊ जेल में क़ैद कर दिया गया।

अब शिया क़ौम मौलाना को रिहा करवाने  एहतिजाज करने लगे। औरतों ने कमान संभाल ली। उन्होंने हिन्दू औरतों का लिबास पहना और एक अर्थी के साथ गोमती नदी गई और  वहां से बोट पर बैठ कर नदी पार करके DM और CM के घरों के घेराओ कर दिया।

क़ौम की औरतें घरों में बैठे उलेमा  ज़ाकेरिन के घर उनको शर्म दिलाने गई (एक पर तो जूतियां भी फेंकी और चूड़ियाँ पेश की) जिसके बाद एक मौलाना को छोड़ कर सब ने तीसरे दिन अपने को गिरफ़्तारी के लिए पेश किया और लखनऊ जेल में पनाह ली।

दूसरे शहरों और मुल्कों में ज़बरदस्त प्रोटेस्ट्स हुए और एलान हुआ की अगर 7 रबी उल अव्वल तक मौलाना को रिहा नहीं किया तो दूसरे शहर के शिया 8 रबी उल अव्वल को लखनऊ पर धावा बोल देंगे। हुकूमत हार गई और मौलाना कल्बे जवाद साहब व दीगर शिया कैदियों को 8 जुलाई, 1997 को रिहा कर दिया गया।

9 जुलाई, 1997 के तमाम बड़े अखबारात ने हैडलाइन लगाई "हुकूमत ने घुटने टेक दिए, मौलाना कल्बे जवाद रिहा". हुकूमत ने एक हाई लेवल कमिटी नॉमिनेट की और तीन महीने में सोलुशन का वादा किया। हुकूमत ने शिया - सुन्नी लीडर्स से मुज़केरात के बाद एक ट्राई पार्टी एग्रीमेंट साइन करवाया (शिया - सुन्नी - डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन) जिसके बाद शियों का पहला जुलूस 21 माहे रमज़ान (जनवरी, 1998) के दिन उठा और माशाल्लाह शियो को  9 दिन अपने जुलूस उठाने की इजाज़त मिल गई (1, 7, 8, 9 और 10 मुहर्रम, चेहलुम, 8 रबी उल अव्वल, 19 और 21 माहे रमज़ान).

मौलाना कल्बे जवाद साहब ने अब वक़्फ़ की प्रॉपर्टीज आज़ाद करवाने का बेडा उठाया  बदौलत इमामबाड़ा सिब्तैनाबाद, आलम नगर की 8 बीघा ज़मीन (जहाँ आज शिया कॉलोनी बन गई है और सैकड़ो शिया आबाद है), आसफ़ी मस्जिद के पुश्त की ज़मीन जिस पर LDA ने कब्ज़ा किया था (और जिसकी बिना पर मौलाना पर केस भी दर्ज हुआ था और अभी कुछ दिनों पहले केस वापस लिया गया है)

मौलाना कल्बे जवाद साहब ने दो साल क़ब्ल बहोत से सीनियर उलेमा के साथ मजलिस ए उलेमा ए हिन्द की बुनियाद डाली जो शियों के हुक़ूक़ की बाज़याबी के लिए जद्दो जेहद कर रही है। इस तंज़ीम में भी लखनऊ का कोई भी आलिम ए दीन या ज़ाकिर शामिल नहीं है।

ऊपर लिखे हालात से वाज़ेह हो गया होगा की लखनऊ के तक़रीबन तमाम उलेमा व ज़ाकिरीन हज़रात ने अब तक किसी क़ौमी मसले में न तो मौलाना कल्बे आबिद साहब का साथ दिया, न ही मौलाना कल्बे जवाद साहब का और न ही मजलिस ए उलेमा ए हिन्द का। बल्कि अक्सर ओ बेश्तर तहरीक को कमज़ोर करने की कोशिशें ही करते दिखाई दिए। जबकि मौलाना कल्बे आबिद साहब और मौलाना कल्बे जवाद साहब ने हमेशा उलेमा को साथ आने की दवात दी (मौलाना कल्बे जवाद साहब तो यह भी कहते हैं की  मैं तो छोटा हूँ, सीनियर उलेमा को मुझे खुद हुक्म देना चाहिए और मैं उनके पीछे चलने को तैयार हूँ। )

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Lucknow Shia Ehtijaaj ki Mukhtasar Tarikh Lucknow Shia Ehtijaaj ki Mukhtasar Tarikh

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