3 Dec 2014

Marja-e-Taqleed aur Zaruri Malumaat



मरजा ए तक़लीद और ज़रूरी मालूमात 


जैसा के हम सब जानते है के आज कल हिंदुस्तान के शिओ में तक़लीद को  ले कर काफी सारी फ़िक्रे उभर रही है, इस को हल करने की कोशिश आली जनाब हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद अहमद अली आबेदी साहब ने अपने पिछले हफ्ते (28/11/2014)  खोजा मस्जिद, डोंगरी, मुंबई के जुमे के ख़ुत्बे में की. 

मौलाना आबेदी ने अपने ख़िताब का आग़ाज़ में लोगो को ईरान के शहर, क़ुम में मौजूद बुज़ुर्ग ओलमा की अंजुमन, “जामा ए मुदर्रिसीन”, से आश्ना कराया और इस बात पर ज़ोर दिया की ये रस्ते पर चलने वाले लोगो की नहीं बल्कि हक़ीक़तन बुज़ुर्ग ओलमा की जमाअत है. 
मौलाना आबेदी साहब के बक़ौल, जामे मुदर्रिसीन क़ुम में मौजूद बुज़ुर्ग ओलमा जिसमे आयतुल्लाह मकरेम शिराज़ी, आयतुल्लाह सफी गुलपैगानी, आयतुल्लाह नूरी हमदानी, आयतुल्लाह ख़ामेनई और  दीगर  मुज्तहेदीन की जमात है. इस जमात का एक अहम काम है कि सारी दुनिया के लिए “आलम” का इन्तेखाब है.


आलमकौन होता है? और क्या हमें उसे जान कर मानना ज़रूरी है?

फ़िक्रे मरजईयत के मुताबिक़ हर शिया के लिए दीनी कामियाबी के तीन राहे हल है:

  1. खुद इज्तिहाद करे और मुजतहिद बने (दिनी पढाई कर के)
  2. एहतियात पर अमल करे (ये काफी मुश्किल अमल है जिसमे हमे सारे बुज़ुर्ग मुजतहिद के फतवो को सामने  रखते हुए सबसे मुश्किल फतवे पर अमल करना होता है)
  3. ऐसे शख्स की तरफ रुजू करे (तक़लीद करे) जो दिनी लिहाज़ से सबसे ज़्यादा  इल्म रखता हो

यहाँ पर हमे इस बात की तरफ ध्यान देने की ज़रूरत है की अवाम कैसे जान सकती  कि सबसे ज़्यादा  इल्म किस आलिम के पास है?

इस सवाल को हल करने के लिए जामे मुदर्रिसीन काम करती है. क़ौम के बुज़ुर्ग ओलमा एक साथ जमा हो कर फैसला करते है कि कौन कौन  मुजतहिद मरजा बनने के दर्जे पर फ़ाइज़ होते है.  फिर इन ओलमा के नामो का  अवाम में ऐलान किया जाता है.

जामे मुदर्रिसीन ने जो फेहरिस्त आज अवाम को दी है उनमे इन मुज्तहेदीन के नाम है:

  1. आयतुल्लाह सीस्तानी (द अ)
  2. आयतुल्लाह ख़ामेनई (द अ)
  3. आयतुल्लाह मकारेम शिराज़ी (द अ)
  4. आयतुल्लाह नूरी हमदानी (द अ)
  5. आयतुल्लाह ज़न्जानी (द अ)
  6. आयतुल्लाह साफी गुलपैगानी (द अ)
  7. आयतुल्लाह वहीद खोरासानी (द अ)

इस फेहरिस्त को तैयार करते वक़्त बहोत सारे मुज्तहेदीन के नामो पर गौरोफिक्र की जाती  है और काफी बहसों तज़्कीरे के बाद फैसला लिया जाता है; ताकि शिया क़ौम अपने “आलम” को पहचान कर सही शख्स की तक़लीद कर सके.

यहाँ एक और सवाल उठता है, क्या हम इस फेहरिस्त से हट कर किसी और की तक़लीद कर सकते है?

ये सवाल करने से पहले हमे सोचना चाहिए कि जिस शख्स को हम तक़लीद के लायक समझते है उनका नाम भी जामे मुदर्रिसीन के पास गया होगा जिस पर बहसों तज़्कीरे के बाद उसे रद्द किया गया हो. जामे मुदर्रिसीन किसी अहल को उस मक़ाम पर पहुचने से नहीं रोकती इसलिए हमें चाहिए कि  हम इस ओलमा की जमात  (जामे मुदर्रिसीन) पर अपना भरोसा क़ायम रखे और इनके दिए हुए मराजेइन की फेहरिस्त में से किसी मरजा की तक़लीद करे.

अगर हमारे पास किसी और मुजतहिद की जानकारी और हम समझते है की वो मरजा होने के लायक है तो ये हमारा फ़रीज़ा है कि इसकी इत्तेला हम जामे मुदर्रिसीन को दे और ये साबित करे कि उस मुजतहिद का इल्मी  मेयार काफी बुलंद है; जो जामे की नज़रो से छुपा रह गया; जिसके बाद जामे  मुदर्रिसीन उस नाम पर फिर से गौरोफिक्र कर सकती है. अपने मन से किसी  मुजतहिद का इंतेखाब करके जामे ओलमा की दी हुई फेहरिस्त को नज़रअंदाज़ करना गलत काम होगा.

इसके साथ ही मौलाना आबेदी ने एक अहम पहलु की तरफ भी हमे आगाह कराया की अगर  किसी मसले में हमारा मरजा कोई फतवा  सादिर नहीं करता है, तो इस जगह हम किसी भी मुजतहिद  की बात नहीं मान सकते; बल्कि जिन मुज्तहेदीन की फेहरिस्त जामे मुदर्रिसीन ने दी उन्ही में से किसी / दूसरे दर्जे के मुजतहिद की बात पर अमल करना ज़रूरी होगा।

अल्लाह हम सब को इन ज़रूरी बातो पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे ताकि हमारा ज़रूरी अमल  “तक़लीद” अच्छी तरह से मुकम्मल हो सके.

अल्लाह पूरी शिया क़ौम को अपने बुज़ुर्ग ओलमा ए दीन पर मुकम्मल भरोसा   करने की और उनके दीनी फरमान पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फर्माए.

अल्लाह हमें एक बनकर उसके दीन पर मुकम्मल तौर पर अमल पैरा होने की ताक़त और क़ूवत दे ताकि हम अपने ज़माने की इमाम के  जल्द ज़हूर के लिए काम कर सके.

इन सब का सिला अल्लाह हमें अपने वली-ए-हुज्जत वली-ए-अम्र इमाम महदी (अ) के ज़हूर की शक्ल में अता फर्माए.

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मरजा ए तक़लीद और ज़रूरी मालूमात 


जैसा के हम सब जानते है के आज कल हिंदुस्तान के शिओ में तक़लीद को  ले कर काफी सारी फ़िक्रे उभर रही है, इस को हल करने की कोशिश आली जनाब हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद अहमद अली आबेदी साहब ने अपने पिछले हफ्ते (28/11/2014)  खोजा मस्जिद, डोंगरी, मुंबई के जुमे के ख़ुत्बे में की. 

मौलाना आबेदी ने अपने ख़िताब का आग़ाज़ में लोगो को ईरान के शहर, क़ुम में मौजूद बुज़ुर्ग ओलमा की अंजुमन, “जामा ए मुदर्रिसीन”, से आश्ना कराया और इस बात पर ज़ोर दिया की ये रस्ते पर चलने वाले लोगो की नहीं बल्कि हक़ीक़तन बुज़ुर्ग ओलमा की जमाअत है. 
मौलाना आबेदी साहब के बक़ौल, जामे मुदर्रिसीन क़ुम में मौजूद बुज़ुर्ग ओलमा जिसमे आयतुल्लाह मकरेम शिराज़ी, आयतुल्लाह सफी गुलपैगानी, आयतुल्लाह नूरी हमदानी, आयतुल्लाह ख़ामेनई और  दीगर  मुज्तहेदीन की जमात है. इस जमात का एक अहम काम है कि सारी दुनिया के लिए “आलम” का इन्तेखाब है.


आलमकौन होता है? और क्या हमें उसे जान कर मानना ज़रूरी है?

फ़िक्रे मरजईयत के मुताबिक़ हर शिया के लिए दीनी कामियाबी के तीन राहे हल है:

  1. खुद इज्तिहाद करे और मुजतहिद बने (दिनी पढाई कर के)
  2. एहतियात पर अमल करे (ये काफी मुश्किल अमल है जिसमे हमे सारे बुज़ुर्ग मुजतहिद के फतवो को सामने  रखते हुए सबसे मुश्किल फतवे पर अमल करना होता है)
  3. ऐसे शख्स की तरफ रुजू करे (तक़लीद करे) जो दिनी लिहाज़ से सबसे ज़्यादा  इल्म रखता हो

यहाँ पर हमे इस बात की तरफ ध्यान देने की ज़रूरत है की अवाम कैसे जान सकती  कि सबसे ज़्यादा  इल्म किस आलिम के पास है?

इस सवाल को हल करने के लिए जामे मुदर्रिसीन काम करती है. क़ौम के बुज़ुर्ग ओलमा एक साथ जमा हो कर फैसला करते है कि कौन कौन  मुजतहिद मरजा बनने के दर्जे पर फ़ाइज़ होते है.  फिर इन ओलमा के नामो का  अवाम में ऐलान किया जाता है.

जामे मुदर्रिसीन ने जो फेहरिस्त आज अवाम को दी है उनमे इन मुज्तहेदीन के नाम है:

  1. आयतुल्लाह सीस्तानी (द अ)
  2. आयतुल्लाह ख़ामेनई (द अ)
  3. आयतुल्लाह मकारेम शिराज़ी (द अ)
  4. आयतुल्लाह नूरी हमदानी (द अ)
  5. आयतुल्लाह ज़न्जानी (द अ)
  6. आयतुल्लाह साफी गुलपैगानी (द अ)
  7. आयतुल्लाह वहीद खोरासानी (द अ)

इस फेहरिस्त को तैयार करते वक़्त बहोत सारे मुज्तहेदीन के नामो पर गौरोफिक्र की जाती  है और काफी बहसों तज़्कीरे के बाद फैसला लिया जाता है; ताकि शिया क़ौम अपने “आलम” को पहचान कर सही शख्स की तक़लीद कर सके.

यहाँ एक और सवाल उठता है, क्या हम इस फेहरिस्त से हट कर किसी और की तक़लीद कर सकते है?

ये सवाल करने से पहले हमे सोचना चाहिए कि जिस शख्स को हम तक़लीद के लायक समझते है उनका नाम भी जामे मुदर्रिसीन के पास गया होगा जिस पर बहसों तज़्कीरे के बाद उसे रद्द किया गया हो. जामे मुदर्रिसीन किसी अहल को उस मक़ाम पर पहुचने से नहीं रोकती इसलिए हमें चाहिए कि  हम इस ओलमा की जमात  (जामे मुदर्रिसीन) पर अपना भरोसा क़ायम रखे और इनके दिए हुए मराजेइन की फेहरिस्त में से किसी मरजा की तक़लीद करे.

अगर हमारे पास किसी और मुजतहिद की जानकारी और हम समझते है की वो मरजा होने के लायक है तो ये हमारा फ़रीज़ा है कि इसकी इत्तेला हम जामे मुदर्रिसीन को दे और ये साबित करे कि उस मुजतहिद का इल्मी  मेयार काफी बुलंद है; जो जामे की नज़रो से छुपा रह गया; जिसके बाद जामे  मुदर्रिसीन उस नाम पर फिर से गौरोफिक्र कर सकती है. अपने मन से किसी  मुजतहिद का इंतेखाब करके जामे ओलमा की दी हुई फेहरिस्त को नज़रअंदाज़ करना गलत काम होगा.

इसके साथ ही मौलाना आबेदी ने एक अहम पहलु की तरफ भी हमे आगाह कराया की अगर  किसी मसले में हमारा मरजा कोई फतवा  सादिर नहीं करता है, तो इस जगह हम किसी भी मुजतहिद  की बात नहीं मान सकते; बल्कि जिन मुज्तहेदीन की फेहरिस्त जामे मुदर्रिसीन ने दी उन्ही में से किसी / दूसरे दर्जे के मुजतहिद की बात पर अमल करना ज़रूरी होगा।

अल्लाह हम सब को इन ज़रूरी बातो पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे ताकि हमारा ज़रूरी अमल  “तक़लीद” अच्छी तरह से मुकम्मल हो सके.

अल्लाह पूरी शिया क़ौम को अपने बुज़ुर्ग ओलमा ए दीन पर मुकम्मल भरोसा   करने की और उनके दीनी फरमान पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फर्माए.

अल्लाह हमें एक बनकर उसके दीन पर मुकम्मल तौर पर अमल पैरा होने की ताक़त और क़ूवत दे ताकि हम अपने ज़माने की इमाम के  जल्द ज़हूर के लिए काम कर सके.

इन सब का सिला अल्लाह हमें अपने वली-ए-हुज्जत वली-ए-अम्र इमाम महदी (अ) के ज़हूर की शक्ल में अता फर्माए.

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