9 Dec 2014

Taqleed - Aalam ka kisi khas shahr ya desh se hona

तक़लीद - आलम का  किसी खास शहर या देश  से होना। 


तक़लीद शिअत के बुनियादी उसूलो में से एक है और इसके बग़ैर किसी भी इंसान का अमल क़ाबिल-ए-क़बूल नहीं है। तक़लीद का आग़ाज़ सबसे पहले आलम की शिनाख्त से शुरू होता है और उसके फतवो पर अमल करने से हमारे ईमान को ताक़त और अल्लाह की बारगाह में मक़बूलियत मिलती है।

आलम की  शिनाख्त / पहचान उसके रहने के शहर / देश या उसके घराने से नहीं की जाती, बल्कि आलम की असली पहचान उसकी इल्मी मेयार और उसका तक़वा परहेज़गारी है।

लेकिन आज कल ये देखने में आता कि लोग किसी मुजतहिद की तक़लीद उसकी इल्मी मेयार और तक़वे को नज़र में रख कर नहीं बल्कि उसके रहने की जगह (शहर / देश) को देख कर करते है। कुछ लोग तो आलम के पहचान की बुनियाद आलिम के खानदान को क़रार देते है और सिर्फ खानदान के अफ़राद की तक़लीद करते है।

हालांकि तक़लीद की पहचान खानदान, रहने की जगह या  कोई और चीज़ नहीं है, बल्कि सिर्फ और सिर्फ इल्मी मेयार और तक़वा है।

अब सवाल ये उठता है कि हम हिंदुस्तान में रहते हुए किसी मुजतहिद के इल्मी मेयार और तक़वा परहेज़गारी का इम्तिहान कैसे ले सकते है, जबकी खुद हमारे इल्म और तक़वे की कोई हैसियत नहीं है।

इस जगह पर "जामे मुदर्रिसीन" (बुज़ुर्ग ओलमा की अंजुमन) हमारी मदद करती है। इस बात की तरफ मौलाना अहमद अली आबेदी  साहब ने अपने जुमा के ख़ुत्बे में तफ़्सीर से बयान किया है और हमारे ब्लॉग में भी मौजूद है:

- मरजा ए तक़लीद और ज़रूरी मालूमात
- तक़लीद - उम्मत की अहम ज़िम्मेदारी

जामे मुदरेसिन कभी शहर, देश या खानदान को नज़र में रख कर मरजा की फेहरिस्त का ऐलान नहीं किया, बल्कि किसी भी मुजतहिद के इल्मी  मेयार और तक़वे को नज़र में रख कर इस बात का फैसला लिया जाता है। 

क़ौम को इस मसले में उलझाने के लिए, कुछ लोग ऐसी हरकते करते है जिसमे बुज़ुर्ग ओलमा के मश्वरे को ताक पर रखकर किसी ऐसे अलीम का नाम अवाम के सामने रख दिया जाता है जो क़ाबिल-ए-एहतेराम शख्सियत तो रहते है लेकिन इल्मी मेयार पर दूसरे मुज्तहेदीन से कम है। 

इसमें बे-एह्तेरामी या बद-तमीज़ी मुराद नहीं है बल्कि वक़्त की ज़रूरत है क्युकी हम सिर्फ ऐसे मुजतहिद की तक़लीद कर सकते है जो इल्मी मेयार और तक़वे में सबसे ऊपर की मंज़िल पर हो। 

इसलिए हमें चाहिए कि हम हमेशा हमारे ओलमा और जामे मुदर्रिसीन से राबता क़ायम रखे और उनकी तरफ से दिए हुए मरजा की फेहरिस्त में से किसी मरजा की तक़लीद करे। 

अल्लाह हमारी जद्दो जहद को क़बूल करे और हमरे आमाल में इख्लास और पाकीज़गी लाए।

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तक़लीद - आलम का  किसी खास शहर या देश  से होना। 


तक़लीद शिअत के बुनियादी उसूलो में से एक है और इसके बग़ैर किसी भी इंसान का अमल क़ाबिल-ए-क़बूल नहीं है। तक़लीद का आग़ाज़ सबसे पहले आलम की शिनाख्त से शुरू होता है और उसके फतवो पर अमल करने से हमारे ईमान को ताक़त और अल्लाह की बारगाह में मक़बूलियत मिलती है।

आलम की  शिनाख्त / पहचान उसके रहने के शहर / देश या उसके घराने से नहीं की जाती, बल्कि आलम की असली पहचान उसकी इल्मी मेयार और उसका तक़वा परहेज़गारी है।

लेकिन आज कल ये देखने में आता कि लोग किसी मुजतहिद की तक़लीद उसकी इल्मी मेयार और तक़वे को नज़र में रख कर नहीं बल्कि उसके रहने की जगह (शहर / देश) को देख कर करते है। कुछ लोग तो आलम के पहचान की बुनियाद आलिम के खानदान को क़रार देते है और सिर्फ खानदान के अफ़राद की तक़लीद करते है।

हालांकि तक़लीद की पहचान खानदान, रहने की जगह या  कोई और चीज़ नहीं है, बल्कि सिर्फ और सिर्फ इल्मी मेयार और तक़वा है।

अब सवाल ये उठता है कि हम हिंदुस्तान में रहते हुए किसी मुजतहिद के इल्मी मेयार और तक़वा परहेज़गारी का इम्तिहान कैसे ले सकते है, जबकी खुद हमारे इल्म और तक़वे की कोई हैसियत नहीं है।

इस जगह पर "जामे मुदर्रिसीन" (बुज़ुर्ग ओलमा की अंजुमन) हमारी मदद करती है। इस बात की तरफ मौलाना अहमद अली आबेदी  साहब ने अपने जुमा के ख़ुत्बे में तफ़्सीर से बयान किया है और हमारे ब्लॉग में भी मौजूद है:

- मरजा ए तक़लीद और ज़रूरी मालूमात
- तक़लीद - उम्मत की अहम ज़िम्मेदारी

जामे मुदरेसिन कभी शहर, देश या खानदान को नज़र में रख कर मरजा की फेहरिस्त का ऐलान नहीं किया, बल्कि किसी भी मुजतहिद के इल्मी  मेयार और तक़वे को नज़र में रख कर इस बात का फैसला लिया जाता है। 

क़ौम को इस मसले में उलझाने के लिए, कुछ लोग ऐसी हरकते करते है जिसमे बुज़ुर्ग ओलमा के मश्वरे को ताक पर रखकर किसी ऐसे अलीम का नाम अवाम के सामने रख दिया जाता है जो क़ाबिल-ए-एहतेराम शख्सियत तो रहते है लेकिन इल्मी मेयार पर दूसरे मुज्तहेदीन से कम है। 

इसमें बे-एह्तेरामी या बद-तमीज़ी मुराद नहीं है बल्कि वक़्त की ज़रूरत है क्युकी हम सिर्फ ऐसे मुजतहिद की तक़लीद कर सकते है जो इल्मी मेयार और तक़वे में सबसे ऊपर की मंज़िल पर हो। 

इसलिए हमें चाहिए कि हम हमेशा हमारे ओलमा और जामे मुदर्रिसीन से राबता क़ायम रखे और उनकी तरफ से दिए हुए मरजा की फेहरिस्त में से किसी मरजा की तक़लीद करे। 

अल्लाह हमारी जद्दो जहद को क़बूल करे और हमरे आमाल में इख्लास और पाकीज़गी लाए।

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