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23 Jul 2015

जन्नतुल बकी की पामाली पर मुज्ताहेदीन के बयानात


अयातुल्लाह खामेनेई का बयान

बड़े अफ़सोस की बात है की आज मुसलमानों और इस्लामी उम्मत के बिच कुछ ऐसी दकियानूसी, अन्धविश्वासी और तकफिरी फ़िक्र रखने वाले मौजूद है जो समझते है की इस्लाम के शुरुवाती दौर के बुज़ुर्ग शक्सियातो का अदब और एहतेराम करना एक बेदीनी हरकत और शिर्क है. यह फ़िक्र अस्ल में एक आफत है. इन्ही लोगो के बाप दादाओ ने जन्नतुल बाकी में आइम्मा (अ) और दीगर बुज़ुर्ग शक्सियातो के मजारो को मिस्मार किया था.

अगर जन्नतुल बाकी में आइम्मा-ए-तहिरिन (अ) की कब्र-ए-मुबारक को पामाल करने वालो की आलमी सतह पर उम्मत-ए-मुस्लिमा की तरफ से मुखालिफत ना हुई होती, तो उन्होंने नबी-ए-अकरम (स) की मुक़द्दस कब्र को भी पूरी तरह बरबाद कर दिया होता. ज़रा गौर करे की इनके दिमाग में कैसे खयालात है और किस तरह की शैतानी फुतुर है. इन लोगो में कितनी बग़ावत है वो देखे. यह लोग इस्लाम के मुक़द्दस शक्सियात की ताज़ीम करने के अवाम के हुकूक को गज़ब करना चाहते है, इस हद तक की वो इसे लोगो पर हरम कह कर मुसल्लत कर रहे है.

ऐसा करने के पीछे वह अपना मंतिक (लॉजिक) बताते है की मुक़द्दस शक्सियात की ताज़ीम करना, उनकी इबादत करने के जैसा है. क्या किसी फर्द की कब्र पर एक रूहानी माहोल में जाना और वह जा कर अल्लाह (सु.व.ता.) से उस फर्द पर रहमत नाजिल करने की दुआ करना और खुद अपने आप के लिए दुआ मांगना शिर्क है?

अस्ल शिर्क तो इंग्लैंड और अमेरीका की इंटेलिजेंस सर्विसेज की घुलमि करना और उनका पिट्टू बनना और मुसलमानों के दिलो को दुखाना है.

यह लोग आज दुनिया के ज़ालिम और जाबिर हुक्मरानों के ऑर्डर्स को मानने, उनकी ताज़ीम करने और उनके सामने झुकने को शिर्क नहीं समझते; लेकिन येही लोग इस्लाम के मुक़द्दस शक्सियात के ताज़ीम करने को शिर्क जानते है. यह सबसे बड़ी आफत है.

आज दुनिया-ए-इस्लाम के लिए बहोत बड़ी आफत येही बातिल और गुस्ताखाना मुहीम है जो दुश्मनों ने अपने रुपयों और रेसौर्सस को इस्तेमाल कर के कड़ी करी है – अफ़सोस के उनके पास रूपये और रेसौर्सस है – और ये एक बहोत बड़ी आफत है.

अयातुल्लाह खामेनेई 05/06/2013
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 अयातुल्लाह नासिर मकारेम शिराज़ी का बयान

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, बड़ा रहम करने वाला है

आज से 88 साल पहले, 8 शव्वाल के रोज़, बेगैरत वहाबियत के नापाक हाथ जन्नतुल बकी के मुक़द्दस कब्रस्तान की जानिब बढे और वहा मौजूद पाक हस्तियों की कब्रे जिनमे अहलेबैत (अ) के साथ साथ रसूल-ए-अकरम (स) के बुज़ुर्ग सहबा और रिश्तेदार शामिल है, को मुन्हदिम कर के सिवाए मिटटी के ढेर के कुछ बाकी नहीं रखा. इस हादसे ने दुनिया भर के मुसलमानों के दिलो को शदीद ठेस पहुचाई, खास कर उन शिया और सुन्नियो को, जो अह्लेबैते रसूल (स) से मुहब्बत करते है.

वहाबियत ने अपने बेबुनियाद ख़यालात की बिना पर न सिर्फ मासूम इमामो की क़ब्रो को मुन्हदिम किया, बल्कि मक्का और मदीना में मौजूद तारीखी चीजों और इमारतों को भी निस्तोनाबूद कर दिया, जो न सिर्फ इस्लामी तहज़ीब की निशानिया थी बलकी दुनिया के तमाम मुसलमानों के तारीखी जौहर भी थे.

एक तरफ जहाँ दुनिया के सभी मुल्क अपनी तारीखी बीसातो की हिफाज़त की तरफ खास ख्याल रखते है, अपने सक़ाफत और अजदाद की निशानी समझते है; साथ ही इसके पीछे खासा खर्च भी करते है. इतना ही नहीं, अगर कोई नादान इस धरोहर को नुकसान पहुचाने की कोशिश करे तो उसे सख्त सजा भी देते है. वही दूसरी तरफ यह बेगैरत वहाबियो ने इस्लामी तारीख की पहचान को निस्तोनाबूद कर दिया और दुनिया को इस अज़ीम इस्लामी सकाफ़त की निशानी और गौहर से फाएदा उठाने से दूर कर दिया; जिसका नुकसान रहती दुनिया तक पूरा कर पाना नामुमकीन है.

वह लोग सोचते है की ये इस्लामी निशानिया उनकी माली जएदाद है और मक्का – मदीना उनकी सरवत है, इसलिए वह लोग जो चाहे कर सकते है! आज उम्मत-ए-मुस्लिमा को चाहिए की अपनी आवाज़ बुलंद करे ताकि ये सऊदी हुकूमत समझ सके की ये तारीखी निशानियाँ उनकी जएदाद नहीं, बल्कि तमाम उम्मत-ए-मुस्लिमा की मिलकियत है. दुनिया के माज़ी में और मुस्तकबिल में किसी को ये हक नहीं की वो इन्हें अपनी जाती मिलकियत समझे; यहाँ तक की सऊदी अरब के वहाबी मुफ्तियों को भी ये हक नहीं है; जिन्हें इस्लाम के बुनियाद की भी बराबर से खबर नहीं है और न कुरान और सुन्नत की खबर है; इन्हें ये हक नहीं बनता के अपने जाली फतवों के ज़रिये उम्मत-ए-मुस्लिमा की अज़ीम निशानियो को हाथ लगाए.

हम मक्का और मदीना में जारी इस्लामी धरोहर की पामाली की शदीद मज़म्मत करते है; खास तौर पर जन्नतुल बाकी में मौजूद कुबुर-ए-आइम्मा (अ) के मुन्हदिम होने की; और ये उम्मीद करते है की एक दिन ज़रूर दुनिया के मुस्लमान जागेगे और अपने जायज़ हुकूक के लिए आवाज़ उठाने के साथ साथ मस्जिद-अल-हरम और मस्जिद-अन-नबी (स) की ज़िम्मेदारी तमाम इस्लामिक मुल्को के सुपुर्द करने के लिए क़दम बढाएँगे ताकि इन मुक़द्दस मकामात को कट्टर वहाबियो के चुंगल से आज़ाद किया जा सके. हम दुनिया के तमाम मुसलमानों को 8 शव्वाल के रोज़ को जन्नतुल बकी की याद में जिंदा रखने के लिए आवाज़ देते है, ताकि उसकी याद हमारे ज़ेहनो में ताज़ी रहे.

हम उम्मीद करते है की जन्नतुल बकी में मौजूद आइम्मा-ए-तहिरिन (अ) की क़ब्रो को जल्द से जल्द फिर से पहले से बेहतर तरीके से तामीर किया जाएगा, जिस तरह से सामर्रह का हरम वहाबियो के मिस्मार करने के पहले से बेहतर तरीके से जेरे तामीर है; ताकि मुसलमानों के ज़ख़्मी दिलो को तस्कीन मिल सके.

जन्नतुल बकी की पामाली पर मुज्ताहेदीन के बयानात जन्नतुल बकी की पामाली पर मुज्ताहेदीन के बयानात

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