12 May 2015
13 रजब का जुलूस, मसला-ए-जैनाबिया और कौम के जवान
13 रजब का जुलूस, मसला-ए-जैनाबिया और कौम के जवान
11 May 2015
Sayyad ki Ghair Sayyad se Shadi
(Al Kafi vol, 8, pg. 182, sifat us shia, hadith
2 May 2015
विलादते इमाम अली (अ) मुबारक
शबे विलादते इमाम अली (अ) में मैं एक फोरार्ड मेसेज; जो की विलादत की मुबारकबाद पेश करने के लिए था.. अपने व्हाट्स ऍप ग्रुप पर पोस्ट किया। ये सोच कर की इससे विलादत के खुशहाली का हक़ अदा हो जाएगा।
उसके बाद जैसे ही रास्ते पर बहार निकला तो एक बुढा इंसान रास्ता क्रॉस करने की कोशिश कर रहा था लेकिन ट्रैफिक की वजह से नहीं कर पा रहा था। मैंने पहले उसे इग्नोर किया; लेकिन जिसकी विलादत का मेसेज फॉरवर्ड किया था उस शख्सियत की याद आ गई और मैंने उस बुढ़े को रास्ता क्रॉस करने में मदद कर दी।
अगर ध्यान से देखे तो आइम्मा (अ) की विलादत और शहादत के मौके इसलिए भी है की हम आइम्मा (अ) की सीरत को हमेशा अपने सामने रखे और उनके दिखाए रास्ते पर ज़िन्दगी गुज़ारे।
मेसेज फॉरवर्ड करना या किसी को मुबारकबाद देना अस्ल मक़सद नहीं रहा है और न कभी रहेगा। इन पाक और मुक़द्दस दिनों का मक़सद इंसान को अंदर से बदलना है।
ज़ुबान पर मुबारकबादी और दिल में कालीक.. यह कभी दीन ने नहीं सिखाया। चाहा यह जा रहा है की हम हक़ीक़त वाली ज़िन्दगी जिए। दिल अंदर से पाक हो और उस तालीम को, जिसे आइम्मा (अ) ने हमें सिखाया है उसे अपनी ज़िन्दगी में अपनाए।
विलादत ए वली ए अव्वल, वली ए मुत्तक़ीन, वली ए अम्र, आयात ए मज़हर ए इलाही इमाम अली (अ) आप सब को बहोत बहोत मुबारक हो।
खुदा हम सब को असली पैरव ए इमाम अली (अ) बनाए और हमारे दिलो को अंदर से पाक करे। इस दिल में मज़लूमो के लिए दर्द और जालिमो से नफरत दे और खुद अपनी ज़िन्दगी से ज़ुल्म को बहार करने की तौफ़ीक़ दे।
27 Apr 2015
Hamari zindagi me Aaimmah (a) se Nazdiki?
आज के भाग दौड़ और सोशल मीडिया के दौर में किसी के पास वक़्त नहीं। जिसके पास करने को कुछ नहीं वो भी बिजी नज़र आते है और मोबाइल से अपना सर उठा कर देखने की फुर्सत तक नहीं। मानो जैसे कोई करोडो का बिज़नेस कर रहे हो। और जिनके पास करने के लिए काम है, उनका तो पूछना गुनाह है। सुबह से ले कर शाम ऐसे गुज़रती है जैसे दुरोंतो एक्सप्रेस।
ऐसे बिजी जीवन में दीन और मज़हब के लिए किसी के पास वक़्त कहा। अगर कोई कुछ दीनी बात कर ले या छेड़ दे, उसे ग्रुप वाले सीधे मुल्ला की पदवी (टाइटल) दे देते है। और इस टाइटल से तो बस खुदा ही बचाए, लोग उस शख्स से ऐसे भागेंगे जैसे कोई जिन्न आ रहा हो। देखने में ऐसा लगता है जैसे मज़हब से ज़्यादातर लोगो का कोई लेने देना रहा ही ना हो।
लेकिन जब बात को गहराई में जा कर देखा जाता है तब पता चलता है कि हर एक शख्स अपनी ज़िन्दगी में दीन और मज़हब से जुड़ा हुआ रहना पसंद करता है, कोई ज़्यादा तो कोई कम। और ये कम ज़्यादा का पैमाना अलग अलग लोगो के लिए अलग है। कोई दान धर्म कर के खुश है, तो कोई हज ज़ियारत पर जा कर, कोई ग़रीबो को खाना खिलाना पसंद करता है, तो कोई तिलावत ए कुरआन पाक, किसी को बजामत नमाज़ पढ़ने में इत्मीनान मिलता है तो किसी को अहलेबैत (अ) की शान में क़सीदे पढ़ कर सुकूने क़ल्ब हासिल करता है। इन सब के बावजूद जब ग्रुप में बात दीन और मज़हब की आती है तो दीनदार कम नज़र आतें है।
अब ज़रा इसी महीने पर नज़र डालिये, माहे रजब के शुरू होते ही कुछ लोग आइम्मा (अ) से जुडे क़सीदे और मनक़बत फॉरवर्ड करने में लग गए। इतने क़सीदे आए की पढ़ना मुश्किल हो गया। और लोग जब फॉरवर्ड करते है तो भी भोलेपन के साथ जैसे की इसे फॉरवर्ड न करेंगे तो बात बिगड़ जाएगी। यहाँ ये बात पर भी ध्यान देना ज़रूरी है की लोग मज़हब को डराने के लिए भी अच्छी तरह से इस्तेमाल करते है।
कुछ लोग तो पिछले दिनों आए भूकम्प (ज़लज़ले) के लिए भी शेर शायरी करते दिखाई जिसमे ज़लज़ले को जनाबे अली असगर (अ) को झूला झुलाने से ताबीर किया गया है। यानी हम इस बात पर राज़ी है की हज़ारों लोग मारे जाए और उसका इलज़ाम हम अहलेबैत (अ) की ज़ात पर डालने से कतराए तक नहीं; यह एक अजीब बात है। इसी तरह के अलग अलग पोस्ट्स सोशल मीडिया पर दिखाई दिए जिससे हमारी क़ौम की सोच का पता चलता है।
सवाल यह उठता है कि हमारी आइम्मा (अ) से कितनी नदजीकी है?
क्या उनसे जुडी मनक़बत पढ़ लेने से या फॉरवर्ड कर देने से बात बन जाएगी? या कुछ और चीज़ हमारी तरफ से चाही जा रही है। क़ुरआन ने रसुलेखुदा (स) और आइम्मा (अ) को इंसानियत के लिए उस्वा (रोल मॉडल) बनाकर भेजा है। इसका मतलब है की हमें अपनी ज़िन्दगी में उनकी छाप उतारनी होगी। सिर्फ नाम के लिए काम कर के बात नहीं बनेगी। नमाज़ पढ़ना, क़ुरआन की तिलावत करना, सदक़ा निकलना, वगैरह तो दिखने वाले अमल है, असली चीज़ तो दिलो का सुधार है।
सबसे पहले हम अपने आप की नियत को चेक करे की मै फूलां काम क्यों कर रहा हु? अगर नियत अल्लाह और अहलेबैत (अ) है, तो फिर हम सही डायरेक्शन (दिशा) में जा रहे है। अगर नियत इससे हटकर लोगो को दिखाना, लाइमलाइट में आना, अपनी शोहरत, अपने दिल को शांति पहुचाने के लिए, या फिर कोई भी दूसरा रीज़न हो तो बेहतर है की काम रोक दे और अपनी नियत सही करे।
आइम्मा (अ) की विलादत पर मुबारकबाद देने के वक़्त भी पहले सोच ले की मै ये क्यों कर रहा हु?
हमें चाहिए की अपनी ज़िंदगी का हर लम्हा जानते हुए गुज़ारे और खुद को बेवकूफ नहीं बनाए। अल्लाह हमारे दिलो के असली हाल से अच्छी तरह वाक़िफ़ है। हमारे लिए राहे आसान है, नियत दुरुस्त करे और फिर कोई भी (ख़ुसूसन दीनी) काम करे। अगर काम लोगो के लिए या खुद के लिए रहेगा तो काम तो हो जाएगा लेकिन फायदे नहीं होगे और मक़सद भी पूरा नहीं होगा।
इन महीनो में, ख़ुसूसन रजब, शाबान और माहे रमज़ान में खास ध्यान अपनी नियत पर रखे। अगर नियत सुधर गई तो कामियाबी हमारे क़दम चूमेगी और अगर सब कुछ कर लिया लेकिन नियत सही नहीं रही, तो मेहनत बेकार चली जाएगी।
आइम्मा (अ) ने खास ध्यान हमें अपनी नियत सुधरने पर देने के लिए कहा है। इसीलिए जो दुआएं हमारे पास आई है उसमे आइम्मा (अ) दिलो के सुधर की तरफ ज़्यादा ध्यान देते दिखाई देते है; और किसी दुनियावी दुआओ का कोई तज़किरा नहीं रहता। मसलन दुआए कुमैल में इमाम अली (अ) अल्लाह से दुआ करते हैं की मेरे आजा जवारेह (हाथ पैरों) में क़ूवत दे - ताकि मै तेरे दीन की खिदमत कर सकु। यहाँ इमाम अपने ज़िन्दगी के लिए बहोत कुछ मांग सकते थे, लेकिन इमाम ने दीन को ज़्यादा तरजीह दी।
इसी तरह हमें भी चाहिए की कोई भी काम करे, उसमे नियत को दुरुस्त कर ले और उसे खास तौर से अल्लाह के लिए रखे। खास उन दिनों के लिए जो आइम्मा (अ) से मख़्सूस है, आदत डाले की उनसे वसीला इख्तियार करे और उनकी ज़िन्दगी से सबक ले कर अपनी ज़िन्दगी में लाए ताकि हम खुदा के क़रीब हो सके। व्हाट्स ऍप पर मुबारकबाद देने के आगे असली काम का आग़ाज़ करे और अपनी ज़िन्दगियों में फ़र्क़ देखे। इंशाल्लाह हम पाएंगे की दुनिया बहोत हसीन है और दूसरे लोग बहोत अच्छे है।
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Sayyad ki Ghair Sayyad se Shadi
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