22 Jan 2015
13 Jan 2015
Biography of Ayatullah Khamenei
- 4 साल की उम्र से पढाई का आग़ाज़
- 9 साल की उम्र में प्राइमरी की पढाई और क़ुरानी अदबियात
- 13 साल की उम्र में मदरसे की पढाई - क़ुरआन, अदबियात, मंतिक़ और फलसफे की पढाई
- 18 साल की उम्र से आयतुल्लाह मिलानी के ज़ेरे एहतेमाम दर्से ख़ारिज का आग़ाज़
- 19 साल की उम्र में नजफ़े अशरफ में बुज़ुर्ग उलेमा जैसे आयतुल्लाह मोह्सिनुल हाकिम और दीगर उलेमा के दर्स में शिरकत
- एक साल बाद (20 साल की उम्र में) ईरान वापसी और इमाम खोमैनी, आयतुल्लाह बुरुजर्दी और दीगर उलेमा के क़यादत में 8 साल तक दर्से ख़ारिज और इज्तिहाद किया।
- 1964 से 1979 तक मशहद में आयतुल्लाह मिलानी के मदरसे में इज्तिहाद और दर्स का सिलसिला जारी रखा
- दीनी तालीम और तदरीस के साथ इन्क़ेलाबी मुहीम में अहम किरदार
- इंक़ेलाब के बाद आप की ज़िन्दगी:
- फेब्रुअरी 1979: इस्लामी इंक़ेलाब के बुनियादी हिस्से
- 1980 - Secretary of Defense.
- 1980 - Supervisor of the Islamic Revolutionary Guards.
- 1980 - Leader of the Friday Congregational Prayer.
- 1980 - The Tehran Representative in the Consultative Assembly.
- 1981 - Imam Khomeini’s Representative in the High Security Council.
- 1981 - Actively presents at the war front during the imposed war between Iran and Iraq.
- 1982 - Assassination attempt by the hypocrites on his life in the Abuthar masjid in Tehran.
- 1982 - Elected President of the Islamic Republic of Iran after martyrdom of Shaheed Muahmmad Ali Raja’i. This was his first term in office; all together he served two terms in office, which lasted until 1990.
- 1982 - chairman of the High Council of Revolution Culture Affairs.
- 1988 - President of the Expedience Council.
- 1990 - Chairman of the Constitution Revisal Comity.
- 1990 - इमाम खोमैनी (र. अ.)की रेहलत के बाद, मजलिसे खुबरागान के एक्जा फैसले से आयतुल्लाह ख़ामेनई ईरान के रहबरे मोअज़्ज़म के मक़ाम पर फ़ाएज़ हुए।
अल्लाह से दुआ है की वो रहबरे मोअज़्ज़म आयतुल्लाह ख़ामेनई का साया हमारे सरो पर क़ायम रखे और उनके दुश्मनो को निस्तो नाबूद करे।
5 Jan 2015
Taqleed - Ek Aqli Zarurat!
इंसान के लिए ये ज़रूरी नहीं की हर वक़्त वह किसी दूसरे आदमी की पैरवी करे या किसी और के नज़रिये पर हमेशा राज़ी रह कर अपनी ज़िन्दगी बसर करे। इस सिलसिले में हमारे सामने चार क़िस्म के हालात आ सकते है:
१. एक जाहिल इंसान दूसरे जाहिल इंसान की पैरवी करे
२. एक ज़्यादा पढ़ालिखा इंसान किसी दूसरे काम पढेलिखे इंसान की पैरवी करे
३. एक पढ़ालिखा इंसान किसी जाहिल इंसान की पैरवी करे
४. एक काम पढ़ालिखा इंसान किसी ज़्यादा पढ़े लिखे इंसान की पैरवी करे
ये बात ज़ाहिर है कि पहले तीन मरहलो को इंसानी अक़्ल पसंद नहीं करती और इनसे हमारा मक़सद हल नहीं होता। जबकि आखरी (4th) पहलु न की सिर्फ अक़्ली लिहाज़ से सही है बल्कि हम अपनी ज़िन्दगी में बहोत सी जगह इस बात को अपनी ज़िन्दगी में बजा लाते है। जैसे किसी मसले में आलिम से राबता क़ायम करना या फिर किसी डॉक्टर से अपनी सेहत के बारे में मश्विरा लेना, वगैरह।
इसी ज़ैल में अगर किसी इंसान को अपना घर बनाना है तो वह बिल्डर के अपनी ज़रूरत बताता है और फिर बिल्डर के ताबे हो जाता है। इसी तरह हम डॉक्टर और वकील की भी पैरवी करते है।
ऐसे बहोत सी मिसाले है जो हम अपनी ज़िन्दगी में किसी दूसरे माहिर की पैरवी करते है। कई बार जानते हुए और बहोत वक़्त ना जानते हुए। लेकिन कई बार क़ानून हमें यह आदेश देता है की किसी माहिर की सलाह के बग़ैर काम ना करे, मसलन, कोई खतरनाक दवाई लेने के वक़्त किसी माहिर डॉक्टर की सलाह और उसकी पर्ची होना ज़रूरी है।
इसके साथ ही अगर दो इंसानो में या गिरोह में लड़ाई हो जाए और फैसला नहीं हो रहा हो तो कोर्ट में जज के सामने उसके फैसले की पैरवी करते है।
दिनी मसाइल में तक़लीद भी इसी तरह है: एक इंसान जो दिनी मसाइल में माहिर नहीं है, किसी ऐसे शख्स की ओर रुजू करे / पैरवी करे जो दिनी मसाइल में माहिर है, जिसे मुजतहिद कहते है। और इस सिम्त में ये वाजिब है है की हर वो शख्स जो मुजतहिद नहीं है, उसे किसी मुजतहिद के फतवो के हिसाब से ज़िन्दगी गुज़ारना ज़रूरी है।
यहाँ एक बात बताना ज़रूरी है कि तक़लीद सिर्फ शरीअत के मसाइल में जायज़ है और हर इंसान के लिए ज़रूरी है की वो अपने अक़ाएद में खुद अपनी रिसर्च करे और इसे कामिल बनाए। क़ुरआन ने ऐसे लोगो को फटकार लगाई है जो अक़ाएद के मामले में दुसरो की पैरवी:
" और जब उन लोगो से कहा जाता है कि उस चीज़ की ओर आओ जो अल्लाह ने नाज़िल की है और रसूल की ओर, तो वे कहते है, "हमारे लिए तो वही काफी है, जिस पर हमने अपने बाप दादा को पाया है." क्या यद्यपि उनके बाप दादा कुछ भी न जानते रहे हो और न सीधे राह पर रहे हो?" (५: १०४)
इसका ये मतलब नहीं की इंसान हमेशा अपने बाप दादाओ के खिलाफ ही काम करे या अक़ीदा रखे। जबकि क़ुरआन कह रहा है की उनकी आँखे बंद कर के पैरवी न की जाए। इस्लाम सिखाता है कि अक़ाएद की दुनिया में दुसरो के नज़रियात को जांच परख कर सिर्फ उन्ही बातो को मानना चाहिए जो अक़्ली है।
"ऐ मुहम्मद (स), बशारत दे दो मेरे उन बन्दों को जो सुनते सब की है और बेहतरीन पर अमल करते है।" (३९: १७)
बातो को समेटते हुए ये कहना सही होगा कि अगर इस्लाम की सही मानो में मानना है तो अपने अक़ाएद को खुद अपनी तरफ से रिसर्च कर के मुहकम करे। इसके साथ ही दिनी शरीअत पर अपना यक़ीन पक्का करे और इस पर अमल करने के लिए किसी मुजतहिद की तक़लीद करे या फिर इस हद तक दिनी इल्म हासिल करे और तक़वा परहेज़गारी बजा लाए की खुद मुजतहिद बन जाए।
31 Dec 2014
What is "Taqleed"? Taqleed kya hai?
तक़लीद का लफ़्ज़ी मतलब किसी की पैरवी करना होता है। दीनी ज़बान में तक़लीद का मतलब "किसी मुजतहिद के फतवो के हिसाब से अपनी ज़िन्दगी बसर करना है।"
मुजतहिद वो शख्स होता है जो दीनी मालूमात में महारत रखता हो जिसे फ़क़ीह कहते है। इससे पहले की हम तक़लीद के बारे में आगे लिखे; कुछ अहम बातो को बताना ज़रूरी है।
*यह राइटउप हुज्जतुल इस्लाम सय्यद मुहम्मद रिज़वी के तक़लीद आर्टिकल से लिया गया है
4 Dec 2014
Taqleed - Ummat ki Aham Zimmedari
हुज्जतुल इस्लाम मौलाना अहमद अली आबेदी साहब के मुंबई खोजा जामा मस्जिद के तारीखी ख़ुत्बे के बाद उम्मत ए तशय्यो में एक ज़िम्मेदाराना बदलाव देखने में आ रहा है. लोग कई बातो पर इल्मी बहस करते दिखाई दिए और सोशल नेटवर्क साइट्स पर भी एक ज़िम्मेदाराना गुफ्तगू का आग़ाज़ हुआ है।
- एक मुजतहिद जिसे जामे मुदर्रिसीन ने मरजा का दर्जा दिया है, उसे मुजतहिद न समझना
- दूसरे मुजतहिद जिन्हे जामे मुदर्रिसीन ने मरजा की फेहरिस्त में शामिल नहीं किया है उनकी तक़लीद करना
- अगर किसी आम इंसान को समझ नहीं आ रहा है कि आलम कौन है, तो वह इंसान किसी भी मुजतहिद की तक़लीद करे
- और बहोत से सवलात
3 Dec 2014
Marja-e-Taqleed aur Zaruri Malumaat
- खुद इज्तिहाद करे और मुजतहिद बने (दिनी पढाई कर के)
- एहतियात पर अमल करे (ये काफी मुश्किल अमल है जिसमे हमे सारे बुज़ुर्ग मुजतहिद के फतवो को सामने रखते हुए सबसे मुश्किल फतवे पर अमल करना होता है)
- ऐसे शख्स की तरफ रुजू करे (तक़लीद करे) जो दिनी लिहाज़ से सबसे ज़्यादा इल्म रखता हो
जामे मुदर्रिसीन ने जो फेहरिस्त आज अवाम को दी है उनमे इन मुज्तहेदीन के नाम है:
- आयतुल्लाह सीस्तानी (द अ)
- आयतुल्लाह ख़ामेनई (द अ)
- आयतुल्लाह मकारेम शिराज़ी (द अ)
- आयतुल्लाह नूरी हमदानी (द अ)
- आयतुल्लाह ज़न्जानी (द अ)
- आयतुल्लाह साफी गुलपैगानी (द अ)
- आयतुल्लाह वहीद खोरासानी (द अ)
Ayatullah Khamenei ka Jawano ko paigham (Hindi me)
Ayatullah Syed Ali Khamenei (DA), Islamic Republic Iran ke Rehbar, ka paigham Shuru Allah ke naam se, jo bada Meharbaan aur Nihayat Ra...
Biography of Ayatullah Khamenei
आयतुल्लाह ख़ामेनई की सवानए हयात आयतुल्लाह हाज सय्यद अली हुसैनी ख़ामेनई मरहूम आयतुल्लाह सय्यद जावद हुसैनी ख़ामेनई के फ़रज़न्द है। उनकी ...
Taqleed - Ek Aqli Zarurat!
क्या आज के तालीमी दौर में भी तक़लीद एक अक़्ली ज़रूरत है? इंसान के लिए ये ज़रूरी नहीं की हर वक़्त वह किसी दूसरे आदमी की पैरवी करे या किसी और क...
What is "Taqleed"? Taqleed kya hai?
तक़लीद क्या है? तक़लीद का लफ़्ज़ी मतलब किसी की पैरवी करना होता है। दीनी ज़बान में तक़लीद का मतलब "किसी मुजतहिद के फतवो के हिसाब ...
Taqleed - Ummat ki Aham Zimmedari
तक़लीद - उम्मत की अहम ज़िम्मेदारी हुज्जतुल इस्लाम मौलाना अहमद अली आबेदी साहब के मुंबई खोजा जामा मस्जिद के तारीखी ख़ुत्बे के बाद उम्मत...
Marja-e-Taqleed aur Zaruri Malumaat
मरजा ए तक़लीद और ज़रूरी मालूमात जैसा के हम सब जानते है के आज कल हिंदुस्तान के शिओ में तक़लीद को ले कर काफी सारी फ़िक्रे उभर रही ...