Showing posts with label Imam. Show all posts
Showing posts with label Imam. Show all posts

27 Jul 2015

Baqi aur Quds par siyasat kyu?




Tahreer: Syed Najeebul Hasan Zaidi

Social Media par meri tarah aap ki nigaho se bhi is qism ki post guzri hogi: 
  • Kaha hai Quds ka program karne wale? 
  • Kaha hai Filistin ki aazadi ke liye muzahere karne wale? 
  • Kaha hai Baitul Muqaddas ke silsile me juloos nikalne wale? 
  • Baqi viran hai, hamare char imamo ki qabre sunsaan hai, lekin na Quds ke juloos nikalne walo ki khabar hai na Filistin ka dam bharne walo ka pata; 
  • kya Jannatul Baqi ki azmat aur mazlumiyat Baitul Muqaddas se kam hai jo aaj inhedaame Jannatul Baqi par wo log khamosh hai jo Quds Quds karte ghumte hai?”

5 Jan 2015

Taqleed - Ek Aqli Zarurat!

क्या आज के तालीमी दौर में भी तक़लीद एक अक़्ली ज़रूरत है?

इंसान के लिए ये ज़रूरी नहीं की हर वक़्त वह किसी दूसरे आदमी  की पैरवी करे या किसी और के नज़रिये पर हमेशा राज़ी रह कर अपनी ज़िन्दगी बसर करे। इस सिलसिले में हमारे सामने चार क़िस्म के हालात आ सकते है:

१. एक  जाहिल इंसान दूसरे जाहिल इंसान की पैरवी करे
२. एक ज़्यादा पढ़ालिखा इंसान किसी दूसरे काम पढेलिखे इंसान की पैरवी करे
३. एक पढ़ालिखा इंसान किसी जाहिल इंसान की  पैरवी करे
४. एक काम पढ़ालिखा इंसान किसी ज़्यादा पढ़े लिखे इंसान की पैरवी करे

ये बात ज़ाहिर है कि पहले तीन मरहलो को इंसानी अक़्ल पसंद नहीं करती और इनसे हमारा मक़सद हल नहीं होता। जबकि आखरी (4th) पहलु न की सिर्फ अक़्ली लिहाज़ से सही है बल्कि हम अपनी ज़िन्दगी में बहोत सी जगह इस बात को अपनी  ज़िन्दगी में बजा लाते है। जैसे किसी मसले में आलिम से राबता क़ायम करना या फिर किसी डॉक्टर से अपनी सेहत के बारे में मश्विरा लेना, वगैरह।

इसी ज़ैल में अगर किसी इंसान को अपना घर बनाना है तो वह बिल्डर के अपनी ज़रूरत बताता है और फिर बिल्डर के ताबे हो  जाता है। इसी तरह हम डॉक्टर और वकील की भी पैरवी करते है।

ऐसे बहोत सी  मिसाले है जो हम अपनी ज़िन्दगी में किसी दूसरे माहिर की पैरवी करते है। कई बार जानते हुए और बहोत  वक़्त ना जानते हुए। लेकिन कई बार क़ानून हमें यह आदेश देता है की किसी माहिर की सलाह के बग़ैर काम ना करे, मसलन, कोई खतरनाक दवाई लेने के वक़्त किसी माहिर डॉक्टर की सलाह और उसकी पर्ची होना ज़रूरी है।

इसके साथ ही अगर दो इंसानो में या  गिरोह में लड़ाई हो जाए और फैसला नहीं हो रहा हो तो कोर्ट में जज के सामने उसके फैसले की पैरवी करते है।

दिनी मसाइल में तक़लीद भी इसी तरह है: एक इंसान जो दिनी मसाइल में माहिर नहीं है, किसी ऐसे शख्स की ओर रुजू करे / पैरवी करे जो दिनी मसाइल में माहिर है, जिसे मुजतहिद कहते है। और इस सिम्त में ये वाजिब है है की हर वो शख्स जो मुजतहिद नहीं है, उसे किसी मुजतहिद के फतवो के हिसाब से ज़िन्दगी गुज़ारना ज़रूरी है।

यहाँ एक  बात बताना ज़रूरी है कि तक़लीद सिर्फ शरीअत के मसाइल में जायज़ है और हर  इंसान के लिए ज़रूरी है की वो अपने अक़ाएद में खुद अपनी रिसर्च करे और इसे कामिल बनाए। क़ुरआन ने ऐसे लोगो को फटकार लगाई है जो अक़ाएद के मामले में दुसरो की पैरवी:

" और जब उन लोगो से कहा जाता है कि उस चीज़ की ओर आओ जो अल्लाह ने नाज़िल  की है और रसूल की ओर, तो वे कहते है, "हमारे लिए तो वही काफी है, जिस पर हमने अपने बाप दादा को पाया है." क्या यद्यपि उनके बाप दादा कुछ भी न जानते रहे हो और न सीधे राह पर रहे हो?" (५: १०४)

इसका ये मतलब नहीं की इंसान  हमेशा अपने   बाप दादाओ के खिलाफ ही काम करे या अक़ीदा रखे। जबकि क़ुरआन कह रहा है की उनकी आँखे बंद कर के पैरवी न की जाए। इस्लाम सिखाता है कि अक़ाएद की दुनिया में दुसरो के नज़रियात को जांच परख कर सिर्फ उन्ही  बातो को मानना चाहिए जो अक़्ली है।

"ऐ मुहम्मद (स), बशारत दे दो मेरे उन बन्दों को जो सुनते सब की है और बेहतरीन पर अमल करते है।" (३९: १७)

बातो को समेटते हुए ये कहना सही होगा कि अगर इस्लाम की सही मानो में मानना है तो अपने अक़ाएद को खुद अपनी  तरफ से रिसर्च कर के मुहकम करे।  इसके साथ ही दिनी शरीअत पर अपना यक़ीन पक्का करे और इस पर अमल करने के लिए किसी मुजतहिद की तक़लीद करे या फिर इस हद तक दिनी इल्म हासिल करे और तक़वा परहेज़गारी बजा लाए की खुद मुजतहिद बन जाए।

31 Dec 2014

What is "Taqleed"? Taqleed kya hai?


तक़लीद क्या है?




तक़लीद का लफ़्ज़ी मतलब किसी की पैरवी  करना होता है। दीनी ज़बान में  तक़लीद का मतलब "किसी मुजतहिद के फतवो के हिसाब से अपनी ज़िन्दगी बसर करना है।" 


मुजतहिद  वो शख्स होता है जो दीनी मालूमात में महारत रखता हो जिसे फ़क़ीह कहते है। इससे पहले की हम तक़लीद के बारे में आगे लिखे; कुछ अहम बातो को बताना ज़रूरी है। 
 

इंसान की फितरत है के वह एक समाज के अंदर ज़िन्दगी बसर करता है  और समाज की खासियत ये है कि उसके कुछ क़ानून होते है जिसे उसमे रहने वाले हर इंसान को मानने होते है। इस्लाम कहता है की अल्लाह ने इंसान की हिदायत के लिए बहोत से अम्बिया और मुरसलीन को भेजा और अपना मुक़द्दस पैग़ाम इंसानियत के लिए पहुंचवाया।
अल्लाह ने आखरी नबी की शक्ल में हमारे प्यारे पैगम्बर मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह (स) को भेजा जिन्होंने अल्लाह के पैग़ाम को मुक़द्दस इस्लाम की शक्ल में पेश किया जो इंसानो की आखिर वक़्त तक हिदायत करता रहेगा।

जैसा की हम सब जानते है की अल्लाह ने इंसानो को और पुरे आलम को ख़ल्क़ किया है, उसी को ये  हक़ हासिल है की हमारे लिए क़ानून बनाए। अम्बिया और रसूल अल्लाह की तरफ से इंसानो  के लिए उस्वा है और अल्लाह का पैग़ाम पहुचाने वाले है। किसी भी अम्बिया, रसूल और इमाम को क़ानून बनाने का हक़ हासिल नहीं है।

मज़हबे शिअत के मुताबिक़ इमाम पैग़म्बर का जानशीन होता है और दीन-ओ-शरीअत के हिफाज़त और तर्जुमानी का ज़ामिन होता है। इस्लाम  शुरूआती दौर में रसुलेखुदा (स) ने उम्मते मुस्लिमा की रहनुमाई की और हर मुश्किल  वक़्त में उम्मत को निजात दिलाई। इमाम अली (अ) के दौर से हमारे ग्यारवे इमाम, इमाम हसन अस्करी (अ) तक, शिअत को रहनुमाई सीधे हमारे इमामो के ज़रिए मिलती रही।

उसके बाद ग़ैबते सुग़रा (छोटी ग़ैबत) के ज़माने में हमारे बारवे इमाम, इमाम मेहदी (अ) ने चार नायबे खास मुअय्यन किये जो इमाम के हुक्म से सीधे ज़माने के शिओ की रहनुमाई करते रहे। लेकिन  329  AH  में इमाम मेहदी (अ) अल्लाह के हुक्म हुक्म से ग़ैबते कुबरा (बड़ी ग़ैबत) में चले गए, जिसके बाद हर शिया  पर ये ज़रूरी हो गया की वो अपने ज़माने के फ़क़ीह मुजतहिद की तक़लीद करे और उसके बताए हुए तरीके से अपनी इंफिरादि और इज्तिमाई ज़िन्दगी बसर करे। 

*यह राइटउप हुज्जतुल इस्लाम सय्यद मुहम्मद रिज़वी के तक़लीद आर्टिकल से लिया गया है

Baqi aur Quds par siyasat kyu? Baqi aur Quds par siyasat kyu?

Tahreer: Syed Najeebul Hasan Zaidi Social Media par meri tarah aap ki nigaho se bhi is qism ki post guzri hogi:  Kaha hai ...

Taqleed - Ek Aqli Zarurat! Taqleed - Ek Aqli Zarurat!

क्या आज के तालीमी दौर में भी तक़लीद एक अक़्ली ज़रूरत है? इंसान के लिए ये ज़रूरी नहीं की हर वक़्त वह किसी दूसरे आदमी  की पैरवी करे या किसी और क...

What is "Taqleed"? Taqleed kya hai? What is "Taqleed"? Taqleed kya hai?

तक़लीद क्या है? तक़लीद का लफ़्ज़ी मतलब किसी की पैरवी  करना होता है। दीनी ज़बान में  तक़लीद का मतलब "किसी मुजतहिद के फतवो के हिसाब ...

Contact Form

Name

Email *

Message *

Comments