31 Jul 2015

Lucknow me Shiyo ke Halaat par khususi article: Hathi ke Soond me Chuntiyo ka Dharna


इलाक़े की चुटियो ने मिल कर एक हंगामी मीटिंग तलब की के हाथी के साथ अब क्या हो? बात बहोत बढ़ चुकी है इनके घरों को बरबाद कर दिया गया है. खाना व काशाना वीरान हो चूका है. जिस ज़मीन पर वह अपना आज़ुका तलाश करती इधर उधर घुमती थी उस पर अब हाथी ने अपने महकमे तर्क्यात के वजीर भालू के इशारे पर दरिंदा भेडिये को मुसल्लत कर दिया है. 

जब से भेदिया आया है तब से उस ने मुतहर्रिक चुटियो का जीना दूभर कर दिया है. उनके सारे इलाके की घेराबंदी कर के उस पर अपने बाड़े की तख्ती थोक दी है. सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उनके आबाओ अजदाद की जएदाद पर भी भेडिये की नज़र है. कब इसे अपने हमनवाओ के साथ शेयर कर ले नहीं मालूम?

अब तो कुछ होना ही चाहिए इस लिए के इस से पहले जितने भी अह्तेजजात चुटियो ने किये या तो हाथी ने मीठी मीठी बाते बना कर इन्हें ख़त्म कर चुटियो के घर को अपनी गिरगीटो की फ़ौज से बुरी तरह कुचल दिया और चुटिया घूम फिर कर वहीँ पहुच गई जहाँ पहले थीं. 

लेकिन अब बहुत हो गया, भेडिये से निजात हर हाल में मिलना चाहिए. कोई भी मुंसिफ जानवर आकर ओहदा संभाले बस, भेड़िया ना हो. इस लिए के हाथी की रोज़ बा रोज़ बढती बेताफाउती और रियाया के सिलसिले में इस की लताल्लुकी से आए दिन इलाके की लोमड़िया भेडिये की सरपरस्ती में मुश्किलात कड़ी कर रही है. 

जबके जिस हाथी को हम ने अपने हुकूक के तहफ्फुज़ के लिए चुना था वह भेडिये को मुसल्लत कर के मस्त मगन है इस के बेहिसी बढती ही जा रही है. कितने की बार हम ने इसे मुतावाज्जाह किया के हमारे घर बार वीरान हो रहे है लेकिन वह बस अपनी सूंड हिला कर हर बार येही कहता है के सब सहीह हो जाएगा. मेरी हुकूमत में किसी का हक नहीं मारा जाएगा. लेकिन फिर नए दिन के सूरज के साथ वही भेदिया और वही उस की दरिंदगी.

लेकिन इस बार इससे काम नहीं चलेगा हम सब को मिल कर कुछ करना होगा. मीटिंग में शिरकत तमाम चुटियो ने अपनी अपनी राए दे और फिर तय पाया के सब मिल कर हाथी का पुतला फूंकते है ताके उसे अहसास हो सके के हमारे दरमियान उसे लेकर कितना आक्रोश पाया जाता है. फिर क्या था; तारीख, दिन और मुकाम सब मुअय्यन हो गए और कुछ छुटियाँ हाथी के पुतले को बनाने लग गईं. 

महीनो बाद पुतला बन कर तैयार हुआ. उधर पुतले बनाने जाने की खबर लीक हो गई तो दो रद्दे अमल सामने आए:


  1. हाथी सूंड हिला हिला कर खूब हंसा
  2. भेडिये ने भालू के साथ मिल कर हाथी के खूब कान भरे
इन सब ने लोमडियो और जागून को बुला कर राए मश्वेरह किया. फिर यह तय पाया जो यह कर रहा है करने दो. थक हार कर खुद ही बैठ जाएगे. इस फैसले के बाद हाथी के वसी ओ अरीज़ घर में सब ने खूब दाद ऐश लिया, तरह तरह के खाने खिलाए और सब मुतमइन अपने अपने घरों की जानिब चल दिए. 

सब मुतमइनथे के चुटिया पुतला जलने से आग का तो सोच भी नहीं सकती है और जितना पुतला जलाएगी उन्हें ही मश्शकत होगी. जितना धरना देंगी उन्हें ही परेशानी होगी. हाथी तो अपने बड़े घर में, बेशकीमती कपडे पहने, सायादार दरख्तों की छाओ में महफूज़ ही रहेंगा.

इधर चुटियो के एक धड़े ने अपना एहतेसाब किया तो इस नतीजे पर पहुंची के अगर हमने हाथी का पुतला जला भी दिया उअर हाथी इस से भड़क गया तो नुकसान किस का होगा? 

यह भी तो हो सकता है के वह भालू, भेडिये, लोमडियो और जागून से और घुल मिल जाए; कहीं इसका असर यह ना हो के वह और भेड़िया पहले से ज्यादा होशियार हो जाए, तो क्यों ना अपनी हिकमते अमली को तब्दील किया जाए; वैसे भी साड़ी पावर हाथी के पास है, सारे दरिंदो को तो भेडिये ही ने पला हुआ है और भेडिये को भालू की सिफारिश पर लाया गया है. 

हाथी ने तो सिर्फ अपनी रज़ामंदी ज़ाहिर की है के जो भालू करे वह सही है और बस जबके हाथी से हमारी कोई डायरेक्ट दुश्मनी भी नहीं है बिला वजह हम हाथी को अपना दुश्मन क्यों बनाए? 

क्यों ना कुछ ऐसा करें के हाथी से दोस्ती बढाए और दोस्ती दोस्ती में उस से नज़दीक हो ताकि जिस तरह वह भेडिये से क़रीब है वैसे ही हमारे साथ भी हो जाए.

बातो तो पते की थी लेकिन ऐसा हो कैसे? कुछ समझदार चुटियाँ आगे बढीं और उन्होंने यह तजवीज़ राखी के हाथी की अज़ीम सलतनत को बहुत साड़ी जगहों पर काबिल, लायक़ और इमानदार अफसरों की ज़रूरत है क्यों ना हम ऐसा करें के इन ओहदों के हुसूल के लिए कोशिश करें. हमारे पास ना पढ़े लिखो की कमी है ना ही बसलाहियत अफराद की. 

हम अगर एक दुसरे को सपोर्ट करें तो पढ़े लिखो को तो हाथी के कालीदी मनासिब तक पहुंचा ही सकते है और एक बात कालीदी ओहदे हमारे हाथ आ गए तो हम हुकुमती पॉलिसियो को अपने हक में ज़रूर कर सकते है.

फिर क्या था! चुटियो के इस धड़े ने ख़ामोशी के साथ अपना काम शुरू किया. जो ना तजरुबाकार अप्राद थे उन्होंने साहबे तजरुबा अफराद के सामने जानू ख़म किया और हर एक ने अपनी महारत को दुसरे के साथ शेअर किया और ऐसा कुछ हो गया के कहना मुश्किल हो गया हुकूमत चुटियो की है या हाथी की...

उधर चुटियो का दूसरा जत्था हाथी के पुतले बना बना कर फूंकने में लगा रहा जिसके बनाने और फूंकने दोनों में सरमाया जाता और पुतला फूंक तो दिया जाता लेकिन इस के बाद बहिफज़त अपने अपने घरों तक पहुंचना बहोत मुश्किल होता. 

शबो रोज़ गुज़रते रहे; एक दिन हाथी ने अपनी मशीनरी के कालीदी ओहदेदारों को अपने घर दावत में चुटियो के सरदार ने एक जुम्बिश की तो साड़ी चुटियो ने तय शुदा प्रोग्राम के तहत अपनी अपनी जगह संभाल ली और एक झुंड इन किलो के अन्दर जगह बना कर बैठ गया जो हाथी की मरघूब गिज़ा थे.

जैसे ही हाथी ने किलों इ तरफ सूंड की कुछ चीटियाँ आननफानन उसकी सूंड में घुस गई. अब हाथी इधर उधर सूंड घुमाता चीखता चिंघाड़ता लेकिन सब बे सूद. उस दिन का तो चुटियो को बे सबरी से इंतज़ार था जब हाथी थक हार कर बैठ गया और हांफने लगा और उस से कुछ बन ना पडा तो चुटियो ने कहा हम ने तुम्हारी सूंड में धरना दे दिया है. जब तक तुम भेडिये कको हटा कर किसी मुनासिब फर्द को नहीं लाते, हम तुम्हारी सूंड से निकलने वाले नहीं है.

इसी अस्ना में हाथी को उसके जागून ने काए काए हुए खबर दी के चुटियो का एक जत्था तुम्हारे घर के बहार तुम्हारा पुतला फूंक रहा है. अब तो हाथी गुस्से से तिलमिला उठा. उसे अहसास हुआ के जब सूंड में चीटिया नहीं थीं तब भी कुछ चीटियाँ उसका पुतला बना कर फूंकती थी तब वह इसी खबर पर सूंड हिला हिला कर हसता था. 

लेकिन आज पहली बारे उसे अन्दर और बहार दोहरी जलन का अहसास हो रहा था. कुछ चीटियाँ उस की सूंड में ऑपरेशन जारी रखे थी तो कुछ बहार इसका पुतला नज़रे आतिश कर रही थी. घर के अन्दर ज़ख्म लग रहे थे तो बहार उन पर नमक पाशी हो रही थी. वह इस बार इन नन्ही नन्ही चुटियो की हिकमते अमली पर हैरान ओ अंगुश्त  दन्दान था के हम तो इन्हें सिर्फ पुतला फूंकने तक महदूद समझ रहे थे लेकिन यह तो बहत दूरंदेश निकलें.

अब इस के पास चीटियों के सामने रहे का एक ही रास्ता था और वह उनके मुतालेबात को तस्लीम करना था. उस ने सरेंडर करते हुए हाँफते कांपते सूंड ऊपर करके कहा, “ठीक है, मैंने तुम्हारे मुतालेबे को मंज़ूर किया. मैं भेडिये को माजूल करता हु और वडा करता हु के आज के बाद कभी कोई भेदिया तुम पर मुसल्लत नहीं होंगा”.

इस फर्जी दास्ताँ से मुमकिन है अलग अलग नतीजे निकलें लेकिन मेरी समझ में येही आता है के वुजूद छोटा हो या बडा; फ़र्क नहीं पड़ता – हाँ फ़र्क पड़ता है इस बात से के वुजूद के अन्दर अक्लानियत का पहलु कितना है. इस के अन्दर इज्तेमाई शऊर कितना है. शक नहीं के छोटे से छोटा वुजूद भी अगर अकली बुनियादों पर मुस्तहकम हिकमते अमली के साथ आगे बढे तो कामियाबी इस का मुक़द्दर है.

तहरीर: सय्यद नजीबुल हसन जैदी.

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इलाक़े की चुटियो ने मिल कर एक हंगामी मीटिंग तलब की के हाथी के साथ अब क्या हो? बात बहोत बढ़ चुकी है इनके घरों को बरबाद कर दिया गया है. खाना व काशाना वीरान हो चूका है. जिस ज़मीन पर वह अपना आज़ुका तलाश करती इधर उधर घुमती थी उस पर अब हाथी ने अपने महकमे तर्क्यात के वजीर भालू के इशारे पर दरिंदा भेडिये को मुसल्लत कर दिया है. 

जब से भेदिया आया है तब से उस ने मुतहर्रिक चुटियो का जीना दूभर कर दिया है. उनके सारे इलाके की घेराबंदी कर के उस पर अपने बाड़े की तख्ती थोक दी है. सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उनके आबाओ अजदाद की जएदाद पर भी भेडिये की नज़र है. कब इसे अपने हमनवाओ के साथ शेयर कर ले नहीं मालूम?

अब तो कुछ होना ही चाहिए इस लिए के इस से पहले जितने भी अह्तेजजात चुटियो ने किये या तो हाथी ने मीठी मीठी बाते बना कर इन्हें ख़त्म कर चुटियो के घर को अपनी गिरगीटो की फ़ौज से बुरी तरह कुचल दिया और चुटिया घूम फिर कर वहीँ पहुच गई जहाँ पहले थीं. 

लेकिन अब बहुत हो गया, भेडिये से निजात हर हाल में मिलना चाहिए. कोई भी मुंसिफ जानवर आकर ओहदा संभाले बस, भेड़िया ना हो. इस लिए के हाथी की रोज़ बा रोज़ बढती बेताफाउती और रियाया के सिलसिले में इस की लताल्लुकी से आए दिन इलाके की लोमड़िया भेडिये की सरपरस्ती में मुश्किलात कड़ी कर रही है. 

जबके जिस हाथी को हम ने अपने हुकूक के तहफ्फुज़ के लिए चुना था वह भेडिये को मुसल्लत कर के मस्त मगन है इस के बेहिसी बढती ही जा रही है. कितने की बार हम ने इसे मुतावाज्जाह किया के हमारे घर बार वीरान हो रहे है लेकिन वह बस अपनी सूंड हिला कर हर बार येही कहता है के सब सहीह हो जाएगा. मेरी हुकूमत में किसी का हक नहीं मारा जाएगा. लेकिन फिर नए दिन के सूरज के साथ वही भेदिया और वही उस की दरिंदगी.

लेकिन इस बार इससे काम नहीं चलेगा हम सब को मिल कर कुछ करना होगा. मीटिंग में शिरकत तमाम चुटियो ने अपनी अपनी राए दे और फिर तय पाया के सब मिल कर हाथी का पुतला फूंकते है ताके उसे अहसास हो सके के हमारे दरमियान उसे लेकर कितना आक्रोश पाया जाता है. फिर क्या था; तारीख, दिन और मुकाम सब मुअय्यन हो गए और कुछ छुटियाँ हाथी के पुतले को बनाने लग गईं. 

महीनो बाद पुतला बन कर तैयार हुआ. उधर पुतले बनाने जाने की खबर लीक हो गई तो दो रद्दे अमल सामने आए:


  1. हाथी सूंड हिला हिला कर खूब हंसा
  2. भेडिये ने भालू के साथ मिल कर हाथी के खूब कान भरे
इन सब ने लोमडियो और जागून को बुला कर राए मश्वेरह किया. फिर यह तय पाया जो यह कर रहा है करने दो. थक हार कर खुद ही बैठ जाएगे. इस फैसले के बाद हाथी के वसी ओ अरीज़ घर में सब ने खूब दाद ऐश लिया, तरह तरह के खाने खिलाए और सब मुतमइन अपने अपने घरों की जानिब चल दिए. 

सब मुतमइनथे के चुटिया पुतला जलने से आग का तो सोच भी नहीं सकती है और जितना पुतला जलाएगी उन्हें ही मश्शकत होगी. जितना धरना देंगी उन्हें ही परेशानी होगी. हाथी तो अपने बड़े घर में, बेशकीमती कपडे पहने, सायादार दरख्तों की छाओ में महफूज़ ही रहेंगा.

इधर चुटियो के एक धड़े ने अपना एहतेसाब किया तो इस नतीजे पर पहुंची के अगर हमने हाथी का पुतला जला भी दिया उअर हाथी इस से भड़क गया तो नुकसान किस का होगा? 

यह भी तो हो सकता है के वह भालू, भेडिये, लोमडियो और जागून से और घुल मिल जाए; कहीं इसका असर यह ना हो के वह और भेड़िया पहले से ज्यादा होशियार हो जाए, तो क्यों ना अपनी हिकमते अमली को तब्दील किया जाए; वैसे भी साड़ी पावर हाथी के पास है, सारे दरिंदो को तो भेडिये ही ने पला हुआ है और भेडिये को भालू की सिफारिश पर लाया गया है. 

हाथी ने तो सिर्फ अपनी रज़ामंदी ज़ाहिर की है के जो भालू करे वह सही है और बस जबके हाथी से हमारी कोई डायरेक्ट दुश्मनी भी नहीं है बिला वजह हम हाथी को अपना दुश्मन क्यों बनाए? 

क्यों ना कुछ ऐसा करें के हाथी से दोस्ती बढाए और दोस्ती दोस्ती में उस से नज़दीक हो ताकि जिस तरह वह भेडिये से क़रीब है वैसे ही हमारे साथ भी हो जाए.

बातो तो पते की थी लेकिन ऐसा हो कैसे? कुछ समझदार चुटियाँ आगे बढीं और उन्होंने यह तजवीज़ राखी के हाथी की अज़ीम सलतनत को बहुत साड़ी जगहों पर काबिल, लायक़ और इमानदार अफसरों की ज़रूरत है क्यों ना हम ऐसा करें के इन ओहदों के हुसूल के लिए कोशिश करें. हमारे पास ना पढ़े लिखो की कमी है ना ही बसलाहियत अफराद की. 

हम अगर एक दुसरे को सपोर्ट करें तो पढ़े लिखो को तो हाथी के कालीदी मनासिब तक पहुंचा ही सकते है और एक बात कालीदी ओहदे हमारे हाथ आ गए तो हम हुकुमती पॉलिसियो को अपने हक में ज़रूर कर सकते है.

फिर क्या था! चुटियो के इस धड़े ने ख़ामोशी के साथ अपना काम शुरू किया. जो ना तजरुबाकार अप्राद थे उन्होंने साहबे तजरुबा अफराद के सामने जानू ख़म किया और हर एक ने अपनी महारत को दुसरे के साथ शेअर किया और ऐसा कुछ हो गया के कहना मुश्किल हो गया हुकूमत चुटियो की है या हाथी की...

उधर चुटियो का दूसरा जत्था हाथी के पुतले बना बना कर फूंकने में लगा रहा जिसके बनाने और फूंकने दोनों में सरमाया जाता और पुतला फूंक तो दिया जाता लेकिन इस के बाद बहिफज़त अपने अपने घरों तक पहुंचना बहोत मुश्किल होता. 

शबो रोज़ गुज़रते रहे; एक दिन हाथी ने अपनी मशीनरी के कालीदी ओहदेदारों को अपने घर दावत में चुटियो के सरदार ने एक जुम्बिश की तो साड़ी चुटियो ने तय शुदा प्रोग्राम के तहत अपनी अपनी जगह संभाल ली और एक झुंड इन किलो के अन्दर जगह बना कर बैठ गया जो हाथी की मरघूब गिज़ा थे.

जैसे ही हाथी ने किलों इ तरफ सूंड की कुछ चीटियाँ आननफानन उसकी सूंड में घुस गई. अब हाथी इधर उधर सूंड घुमाता चीखता चिंघाड़ता लेकिन सब बे सूद. उस दिन का तो चुटियो को बे सबरी से इंतज़ार था जब हाथी थक हार कर बैठ गया और हांफने लगा और उस से कुछ बन ना पडा तो चुटियो ने कहा हम ने तुम्हारी सूंड में धरना दे दिया है. जब तक तुम भेडिये कको हटा कर किसी मुनासिब फर्द को नहीं लाते, हम तुम्हारी सूंड से निकलने वाले नहीं है.

इसी अस्ना में हाथी को उसके जागून ने काए काए हुए खबर दी के चुटियो का एक जत्था तुम्हारे घर के बहार तुम्हारा पुतला फूंक रहा है. अब तो हाथी गुस्से से तिलमिला उठा. उसे अहसास हुआ के जब सूंड में चीटिया नहीं थीं तब भी कुछ चीटियाँ उसका पुतला बना कर फूंकती थी तब वह इसी खबर पर सूंड हिला हिला कर हसता था. 

लेकिन आज पहली बारे उसे अन्दर और बहार दोहरी जलन का अहसास हो रहा था. कुछ चीटियाँ उस की सूंड में ऑपरेशन जारी रखे थी तो कुछ बहार इसका पुतला नज़रे आतिश कर रही थी. घर के अन्दर ज़ख्म लग रहे थे तो बहार उन पर नमक पाशी हो रही थी. वह इस बार इन नन्ही नन्ही चुटियो की हिकमते अमली पर हैरान ओ अंगुश्त  दन्दान था के हम तो इन्हें सिर्फ पुतला फूंकने तक महदूद समझ रहे थे लेकिन यह तो बहत दूरंदेश निकलें.

अब इस के पास चीटियों के सामने रहे का एक ही रास्ता था और वह उनके मुतालेबात को तस्लीम करना था. उस ने सरेंडर करते हुए हाँफते कांपते सूंड ऊपर करके कहा, “ठीक है, मैंने तुम्हारे मुतालेबे को मंज़ूर किया. मैं भेडिये को माजूल करता हु और वडा करता हु के आज के बाद कभी कोई भेदिया तुम पर मुसल्लत नहीं होंगा”.

इस फर्जी दास्ताँ से मुमकिन है अलग अलग नतीजे निकलें लेकिन मेरी समझ में येही आता है के वुजूद छोटा हो या बडा; फ़र्क नहीं पड़ता – हाँ फ़र्क पड़ता है इस बात से के वुजूद के अन्दर अक्लानियत का पहलु कितना है. इस के अन्दर इज्तेमाई शऊर कितना है. शक नहीं के छोटे से छोटा वुजूद भी अगर अकली बुनियादों पर मुस्तहकम हिकमते अमली के साथ आगे बढे तो कामियाबी इस का मुक़द्दर है.

तहरीर: सय्यद नजीबुल हसन जैदी.

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