31 Dec 2014

What is "Taqleed"? Taqleed kya hai?


तक़लीद क्या है?




तक़लीद का लफ़्ज़ी मतलब किसी की पैरवी  करना होता है। दीनी ज़बान में  तक़लीद का मतलब "किसी मुजतहिद के फतवो के हिसाब से अपनी ज़िन्दगी बसर करना है।" 


मुजतहिद  वो शख्स होता है जो दीनी मालूमात में महारत रखता हो जिसे फ़क़ीह कहते है। इससे पहले की हम तक़लीद के बारे में आगे लिखे; कुछ अहम बातो को बताना ज़रूरी है। 
 

इंसान की फितरत है के वह एक समाज के अंदर ज़िन्दगी बसर करता है  और समाज की खासियत ये है कि उसके कुछ क़ानून होते है जिसे उसमे रहने वाले हर इंसान को मानने होते है। इस्लाम कहता है की अल्लाह ने इंसान की हिदायत के लिए बहोत से अम्बिया और मुरसलीन को भेजा और अपना मुक़द्दस पैग़ाम इंसानियत के लिए पहुंचवाया।
अल्लाह ने आखरी नबी की शक्ल में हमारे प्यारे पैगम्बर मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह (स) को भेजा जिन्होंने अल्लाह के पैग़ाम को मुक़द्दस इस्लाम की शक्ल में पेश किया जो इंसानो की आखिर वक़्त तक हिदायत करता रहेगा।

जैसा की हम सब जानते है की अल्लाह ने इंसानो को और पुरे आलम को ख़ल्क़ किया है, उसी को ये  हक़ हासिल है की हमारे लिए क़ानून बनाए। अम्बिया और रसूल अल्लाह की तरफ से इंसानो  के लिए उस्वा है और अल्लाह का पैग़ाम पहुचाने वाले है। किसी भी अम्बिया, रसूल और इमाम को क़ानून बनाने का हक़ हासिल नहीं है।

मज़हबे शिअत के मुताबिक़ इमाम पैग़म्बर का जानशीन होता है और दीन-ओ-शरीअत के हिफाज़त और तर्जुमानी का ज़ामिन होता है। इस्लाम  शुरूआती दौर में रसुलेखुदा (स) ने उम्मते मुस्लिमा की रहनुमाई की और हर मुश्किल  वक़्त में उम्मत को निजात दिलाई। इमाम अली (अ) के दौर से हमारे ग्यारवे इमाम, इमाम हसन अस्करी (अ) तक, शिअत को रहनुमाई सीधे हमारे इमामो के ज़रिए मिलती रही।

उसके बाद ग़ैबते सुग़रा (छोटी ग़ैबत) के ज़माने में हमारे बारवे इमाम, इमाम मेहदी (अ) ने चार नायबे खास मुअय्यन किये जो इमाम के हुक्म से सीधे ज़माने के शिओ की रहनुमाई करते रहे। लेकिन  329  AH  में इमाम मेहदी (अ) अल्लाह के हुक्म हुक्म से ग़ैबते कुबरा (बड़ी ग़ैबत) में चले गए, जिसके बाद हर शिया  पर ये ज़रूरी हो गया की वो अपने ज़माने के फ़क़ीह मुजतहिद की तक़लीद करे और उसके बताए हुए तरीके से अपनी इंफिरादि और इज्तिमाई ज़िन्दगी बसर करे। 

*यह राइटउप हुज्जतुल इस्लाम सय्यद मुहम्मद रिज़वी के तक़लीद आर्टिकल से लिया गया है

9 Dec 2014

Taqleed - Aalam ka kisi khas shahr ya desh se hona

तक़लीद - आलम का  किसी खास शहर या देश  से होना। 


तक़लीद शिअत के बुनियादी उसूलो में से एक है और इसके बग़ैर किसी भी इंसान का अमल क़ाबिल-ए-क़बूल नहीं है। तक़लीद का आग़ाज़ सबसे पहले आलम की शिनाख्त से शुरू होता है और उसके फतवो पर अमल करने से हमारे ईमान को ताक़त और अल्लाह की बारगाह में मक़बूलियत मिलती है।

आलम की  शिनाख्त / पहचान उसके रहने के शहर / देश या उसके घराने से नहीं की जाती, बल्कि आलम की असली पहचान उसकी इल्मी मेयार और उसका तक़वा परहेज़गारी है।

लेकिन आज कल ये देखने में आता कि लोग किसी मुजतहिद की तक़लीद उसकी इल्मी मेयार और तक़वे को नज़र में रख कर नहीं बल्कि उसके रहने की जगह (शहर / देश) को देख कर करते है। कुछ लोग तो आलम के पहचान की बुनियाद आलिम के खानदान को क़रार देते है और सिर्फ खानदान के अफ़राद की तक़लीद करते है।

हालांकि तक़लीद की पहचान खानदान, रहने की जगह या  कोई और चीज़ नहीं है, बल्कि सिर्फ और सिर्फ इल्मी मेयार और तक़वा है।

अब सवाल ये उठता है कि हम हिंदुस्तान में रहते हुए किसी मुजतहिद के इल्मी मेयार और तक़वा परहेज़गारी का इम्तिहान कैसे ले सकते है, जबकी खुद हमारे इल्म और तक़वे की कोई हैसियत नहीं है।

इस जगह पर "जामे मुदर्रिसीन" (बुज़ुर्ग ओलमा की अंजुमन) हमारी मदद करती है। इस बात की तरफ मौलाना अहमद अली आबेदी  साहब ने अपने जुमा के ख़ुत्बे में तफ़्सीर से बयान किया है और हमारे ब्लॉग में भी मौजूद है:

- मरजा ए तक़लीद और ज़रूरी मालूमात
- तक़लीद - उम्मत की अहम ज़िम्मेदारी

जामे मुदरेसिन कभी शहर, देश या खानदान को नज़र में रख कर मरजा की फेहरिस्त का ऐलान नहीं किया, बल्कि किसी भी मुजतहिद के इल्मी  मेयार और तक़वे को नज़र में रख कर इस बात का फैसला लिया जाता है। 

क़ौम को इस मसले में उलझाने के लिए, कुछ लोग ऐसी हरकते करते है जिसमे बुज़ुर्ग ओलमा के मश्वरे को ताक पर रखकर किसी ऐसे अलीम का नाम अवाम के सामने रख दिया जाता है जो क़ाबिल-ए-एहतेराम शख्सियत तो रहते है लेकिन इल्मी मेयार पर दूसरे मुज्तहेदीन से कम है। 

इसमें बे-एह्तेरामी या बद-तमीज़ी मुराद नहीं है बल्कि वक़्त की ज़रूरत है क्युकी हम सिर्फ ऐसे मुजतहिद की तक़लीद कर सकते है जो इल्मी मेयार और तक़वे में सबसे ऊपर की मंज़िल पर हो। 

इसलिए हमें चाहिए कि हम हमेशा हमारे ओलमा और जामे मुदर्रिसीन से राबता क़ायम रखे और उनकी तरफ से दिए हुए मरजा की फेहरिस्त में से किसी मरजा की तक़लीद करे। 

अल्लाह हमारी जद्दो जहद को क़बूल करे और हमरे आमाल में इख्लास और पाकीज़गी लाए।

4 Dec 2014

Taqleed - Ummat ki Aham Zimmedari

तक़लीद - उम्मत की अहम ज़िम्मेदारी


हुज्जतुल इस्लाम मौलाना अहमद अली आबेदी साहब के मुंबई खोजा जामा मस्जिद के तारीखी ख़ुत्बे  के बाद उम्मत ए तशय्यो में एक ज़िम्मेदाराना बदलाव देखने में आ रहा है. लोग कई बातो पर इल्मी बहस करते दिखाई दिए और सोशल नेटवर्क साइट्स पर भी एक ज़िम्मेदाराना गुफ्तगू का आग़ाज़ हुआ है।

ज़्यादातर लोग क़ुम के ओलमा की अंजुमन “जामे मुदर्रिसीन” के बारे में इल्म हासिल करने की कोशिश करते दिखे वही पर लोग ओलमा की तरफ से शाया दीनी मरजा की फेहरिस्त पर भी गुफ्तगू करते दिखाई दिए।

अल्लाह के फ़ज़लो करम से मौलाना के ख़ुत्बे ने तक़लीद और मरजईयत को हिंदुस्तान में, ख़ुसूसन मुंबई में, एक नया जोश और रास्ता दिया है।

अभी तक लोग इस बात से ग़ाफ़िल थे कि  हमारे ओलमा इस तरह का इज्तेमाई फैसला भी लेते है और ऐसी कोई ओलमा की अंजुमन भी है जो अवाम के बारे में इतना सोचती है और उसके मुताबिक़ फैसले भी लेती है।

अल्हम्दुलीलाह मौलाना ने अपने ख़ुत्बे  में इस बात को वाज़ेह तौर पर ज़ाहिर कर के लोगो को सोचने और इस सिम्त में आगे बढ़ने का एक नया रास्ता दिया है। इस चीज़ से ख़ुसूसन क़ौम के नौजवान काफी जोश और जज़्बे के साथ इल्मी गुफ्तगू में आगे दिखाई दे रहे है।

एक तरफ जहाँ क़ौम को मरजईयत से दूर ले जाने की कोशिश की जा  रही है और साथ में कई सारे शक  और शुबे नौजवानो के ज़हन में डाले जा रहे है, मसलन:

  • एक मुजतहिद जिसे जामे मुदर्रिसीन ने मरजा का दर्जा दिया है, उसे मुजतहिद न समझना
  • दूसरे मुजतहिद जिन्हे जामे मुदर्रिसीन ने मरजा की फेहरिस्त में शामिल नहीं किया है उनकी तक़लीद करना
  • अगर किसी आम इंसान को समझ नहीं आ रहा है कि आलम कौन है, तो  वह इंसान किसी भी मुजतहिद की तक़लीद करे
  • और बहोत से सवलात

लेकिन अल्लाह के फज़ल से, मौलाना आबेदी ने अपने जुमे के ख़ुत्बे में इन सब बातो को एक बुनियादी बात से रद्द कर दिया कि मरजा कोई भी मुजतहिद नहीं बन सकता, जब तक जामे मुदर्रिसीन उस मुजतहिद को मरजा की फेहरिस्त में शामिल नहीं कर लेती।

अब सवाल ये उठता है कि लोग अपनी मनघडत बातो को दीन का हिस्सा कैसे बना लेते है? और इन गलत फ़हमियों को कैसे दूर किया जाए?

जिस तरह से मौलाना अहमद अली आबेदी साहब ने आगे बढ़ कर क़ौम के दर्द और ज़रूरत को समझा और एक अहम मसला लोगो के सामने पेश किया, ओलमा को चाहिए कि वो भी इसी तरह अवामुन्नास के ज़रूरी मसाइल को समझ कर खुलके बात करे।

हालांके मौलाना आबेदी साहब ने अपने ख़ुत्बे के आखरी हिस्से में चंद  दीगर मुजतहिद के नाम भी लिए थे, जो की क़ाबिले एहतेराम मुजतहिद और ओलमा है, लेकिन जामे मुदर्रिसीन ने उन्हें मरजा की फेहरिस्त में शामिल नहीं किया है।

ये आज अहम चीज़ है की हम इस मसले की अहमियत को समझे और बारीकी से इसका मुतालेआ करे कि क्या किसी ग़ैर मुजतहिद को ये हक़ बनता है कि वो मरजा का अपने मन से ऐलान करे? क्या किसी राह चलते आम आदमी को ये इख्तियार है कि वो जिसे चाहे अपना मरजा मान ले और दुसरो को भी उसे मानने को कहे?

ऐसी कई चीज़े है जो क़ौम को आगे बढ़कर सीखनी होगी और आगे आने वाली नस्लों तक तक़लीद की अज़ीम नेमत पहुचानी  होगी।

एक और मसला आजकल कुछ लोग आम कर रहे है वो ये है कि ऐसे मुजतहिद की तक़लीद करो जिसके मसले मेरे मन से ज़्यादा मिलते है। मसलन अगर मै चाहता हु कि बैंक का सुद (interest) इस्तेमाल करू और फ़र्ज़ करे की आलम उसे हराम जानता है, तो मै किसी ऐसे मुजतहिद को तलाश करू जो उसे जायज़ जाने और फिर मै उसकी तक़लीद करू। ये हरकत बिलकुल गलत है और असलन फिकरे मरजईयत के खिलाफ है।

अस्ल में हमें चाहिए कि आलम को तलाश करे और उसके मसाइल के हिसाब से अपनी ज़िन्दगी बसर करे।

अल्लाह का करम और अहसान है की उसने हमें ज़िम्मेदार और बबसीरत ओलमा से नवाज़ा है जो क़ौम की ज़रूरत समझ कर मसाइल को पेश करते है।

अल्लाह हमें अपने  ओलमा की पैरवी करने की तौफ़ीक़ अता करे और हमारे मुज्तहेदीन ओ ओलमा की हमेशा हिफाज़त करे।

इलाही आमीन

3 Dec 2014

Marja-e-Taqleed aur Zaruri Malumaat



मरजा ए तक़लीद और ज़रूरी मालूमात 


जैसा के हम सब जानते है के आज कल हिंदुस्तान के शिओ में तक़लीद को  ले कर काफी सारी फ़िक्रे उभर रही है, इस को हल करने की कोशिश आली जनाब हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद अहमद अली आबेदी साहब ने अपने पिछले हफ्ते (28/11/2014)  खोजा मस्जिद, डोंगरी, मुंबई के जुमे के ख़ुत्बे में की. 

मौलाना आबेदी ने अपने ख़िताब का आग़ाज़ में लोगो को ईरान के शहर, क़ुम में मौजूद बुज़ुर्ग ओलमा की अंजुमन, “जामा ए मुदर्रिसीन”, से आश्ना कराया और इस बात पर ज़ोर दिया की ये रस्ते पर चलने वाले लोगो की नहीं बल्कि हक़ीक़तन बुज़ुर्ग ओलमा की जमाअत है. 
मौलाना आबेदी साहब के बक़ौल, जामे मुदर्रिसीन क़ुम में मौजूद बुज़ुर्ग ओलमा जिसमे आयतुल्लाह मकरेम शिराज़ी, आयतुल्लाह सफी गुलपैगानी, आयतुल्लाह नूरी हमदानी, आयतुल्लाह ख़ामेनई और  दीगर  मुज्तहेदीन की जमात है. इस जमात का एक अहम काम है कि सारी दुनिया के लिए “आलम” का इन्तेखाब है.


आलमकौन होता है? और क्या हमें उसे जान कर मानना ज़रूरी है?

फ़िक्रे मरजईयत के मुताबिक़ हर शिया के लिए दीनी कामियाबी के तीन राहे हल है:

  1. खुद इज्तिहाद करे और मुजतहिद बने (दिनी पढाई कर के)
  2. एहतियात पर अमल करे (ये काफी मुश्किल अमल है जिसमे हमे सारे बुज़ुर्ग मुजतहिद के फतवो को सामने  रखते हुए सबसे मुश्किल फतवे पर अमल करना होता है)
  3. ऐसे शख्स की तरफ रुजू करे (तक़लीद करे) जो दिनी लिहाज़ से सबसे ज़्यादा  इल्म रखता हो

यहाँ पर हमे इस बात की तरफ ध्यान देने की ज़रूरत है की अवाम कैसे जान सकती  कि सबसे ज़्यादा  इल्म किस आलिम के पास है?

इस सवाल को हल करने के लिए जामे मुदर्रिसीन काम करती है. क़ौम के बुज़ुर्ग ओलमा एक साथ जमा हो कर फैसला करते है कि कौन कौन  मुजतहिद मरजा बनने के दर्जे पर फ़ाइज़ होते है.  फिर इन ओलमा के नामो का  अवाम में ऐलान किया जाता है.

जामे मुदर्रिसीन ने जो फेहरिस्त आज अवाम को दी है उनमे इन मुज्तहेदीन के नाम है:

  1. आयतुल्लाह सीस्तानी (द अ)
  2. आयतुल्लाह ख़ामेनई (द अ)
  3. आयतुल्लाह मकारेम शिराज़ी (द अ)
  4. आयतुल्लाह नूरी हमदानी (द अ)
  5. आयतुल्लाह ज़न्जानी (द अ)
  6. आयतुल्लाह साफी गुलपैगानी (द अ)
  7. आयतुल्लाह वहीद खोरासानी (द अ)

इस फेहरिस्त को तैयार करते वक़्त बहोत सारे मुज्तहेदीन के नामो पर गौरोफिक्र की जाती  है और काफी बहसों तज़्कीरे के बाद फैसला लिया जाता है; ताकि शिया क़ौम अपने “आलम” को पहचान कर सही शख्स की तक़लीद कर सके.

यहाँ एक और सवाल उठता है, क्या हम इस फेहरिस्त से हट कर किसी और की तक़लीद कर सकते है?

ये सवाल करने से पहले हमे सोचना चाहिए कि जिस शख्स को हम तक़लीद के लायक समझते है उनका नाम भी जामे मुदर्रिसीन के पास गया होगा जिस पर बहसों तज़्कीरे के बाद उसे रद्द किया गया हो. जामे मुदर्रिसीन किसी अहल को उस मक़ाम पर पहुचने से नहीं रोकती इसलिए हमें चाहिए कि  हम इस ओलमा की जमात  (जामे मुदर्रिसीन) पर अपना भरोसा क़ायम रखे और इनके दिए हुए मराजेइन की फेहरिस्त में से किसी मरजा की तक़लीद करे.

अगर हमारे पास किसी और मुजतहिद की जानकारी और हम समझते है की वो मरजा होने के लायक है तो ये हमारा फ़रीज़ा है कि इसकी इत्तेला हम जामे मुदर्रिसीन को दे और ये साबित करे कि उस मुजतहिद का इल्मी  मेयार काफी बुलंद है; जो जामे की नज़रो से छुपा रह गया; जिसके बाद जामे  मुदर्रिसीन उस नाम पर फिर से गौरोफिक्र कर सकती है. अपने मन से किसी  मुजतहिद का इंतेखाब करके जामे ओलमा की दी हुई फेहरिस्त को नज़रअंदाज़ करना गलत काम होगा.

इसके साथ ही मौलाना आबेदी ने एक अहम पहलु की तरफ भी हमे आगाह कराया की अगर  किसी मसले में हमारा मरजा कोई फतवा  सादिर नहीं करता है, तो इस जगह हम किसी भी मुजतहिद  की बात नहीं मान सकते; बल्कि जिन मुज्तहेदीन की फेहरिस्त जामे मुदर्रिसीन ने दी उन्ही में से किसी / दूसरे दर्जे के मुजतहिद की बात पर अमल करना ज़रूरी होगा।

अल्लाह हम सब को इन ज़रूरी बातो पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे ताकि हमारा ज़रूरी अमल  “तक़लीद” अच्छी तरह से मुकम्मल हो सके.

अल्लाह पूरी शिया क़ौम को अपने बुज़ुर्ग ओलमा ए दीन पर मुकम्मल भरोसा   करने की और उनके दीनी फरमान पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फर्माए.

अल्लाह हमें एक बनकर उसके दीन पर मुकम्मल तौर पर अमल पैरा होने की ताक़त और क़ूवत दे ताकि हम अपने ज़माने की इमाम के  जल्द ज़हूर के लिए काम कर सके.

इन सब का सिला अल्लाह हमें अपने वली-ए-हुज्जत वली-ए-अम्र इमाम महदी (अ) के ज़हूर की शक्ल में अता फर्माए.

What is "Taqleed"? Taqleed kya hai? What is "Taqleed"? Taqleed kya hai?

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